Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : पोष : रप००
आवुं चैतन्यजीवन महावीर भगवाने बताव्युं छे. भगवान पोते आवुं जीवन
जीवे छे, ने बीजाने तेवा जीवननो उपदेश दीधो छे. आवुं जीवन जीववुं ते ज महावीर
प्रभुना मोक्षनी साची उजवणी छे. महावीर प्रभुने अने तेमना उपदेशने ओळख्या
वगर एकली बहारनी धामधूमथी महावीर प्रभुनो साचो उत्सव उजवी शकातो नथी.
देहथी भिन्न–रागथी भिन्न चैतन्यप्राणरूप जीवन जीवो, अने बीजाने एवुं जीवन
जीववानुं समजावो,–ए महावीरनो संदेश छे; पण परजीवने आत्मा जीवाडी शके–एम
कांई महावीरनो उपदेश नथी.
चैतन्यशक्तिनी साधना ते महावीर प्रभुनो मार्ग. ते मार्गमां एटले के
चैतन्यशक्तिनी साधनामां वच्चे राग नथी. चैतन्यशक्तिना शुद्ध परिणमनमां राग
समाय नहीं. आत्मा ज तेने कह्यो के जे पोतानी अनंतशक्ति सहित ज्ञानमात्र भावपणे
परिणमी रह्यो छे, ते परिणमननी अस्तिमां रागादि परभावोनी नास्ति छे.
ज्ञानमात्र भावमां परिणमती अनंत शक्तिओ ते बधी शुद्ध छे, तेमां रागादि
अशुद्धता समाती नथी; रागादिभावो ज्ञानमात्र भावथी बहार छे. अहो, आवा
अनेकान्तनुं स्वरूप समजवुं ते तो कोई अपूर्व वात छे, ने ते ज महावीरनाथनो मार्ग
छे.
* साचुं आत्मजीवन *
परथी जीवे एवो पराधीन आत्मा नथी;
आत्मा तो स्वाधीन चैतन्यप्राणवडे जीवनारो छे.
ज्ञानस्वरूप आत्माना अनुभवनुं परिणमन थतां आत्मानुं जीवन
चैतन्यभावरूप प्राणवाळुं थयुं, चैतन्यभावे आत्मा जीवंत थयो, अनंतगुणनुं साचुं
जीवन पर्यायमां प्रगट्युं. आवुं चैतन्यजीवन ते धर्मीनुं आत्मजीवन छे. शरीरमां के
रागमां आत्मानुं जीवन नथी; चैतन्यभावमां ज आत्मानुं जीवन छे.
आवा चैतन्यजीवनना कारण–कार्य आत्मामां ज छे, तेने बहारनां कारण–कार्य
साथे कांई संबंध नथी. आत्मा एवो तुच्छ नथी के तेने जीववा माटे जडशरीरनी–
पैसानी–आयुकर्मनी के रागनी जरूर पडे; ते बधाय वगर एकलो पोताना
चैतन्यभावथी जीवे एवी आत्मानी जीवन–ताकात छे. आवा आत्माने ज्ञानमां लेतां
पर्याय पण एवुं आनंदमय–अतीन्द्रिय जीवन जीवनारी थई गई; तेमां क्यांय शरीर
साथे धन साथे राग साथे कर्म