प्रभुना मोक्षनी साची उजवणी छे. महावीर प्रभुने अने तेमना उपदेशने ओळख्या
वगर एकली बहारनी धामधूमथी महावीर प्रभुनो साचो उत्सव उजवी शकातो नथी.
देहथी भिन्न–रागथी भिन्न चैतन्यप्राणरूप जीवन जीवो, अने बीजाने एवुं जीवन
जीववानुं समजावो,–ए महावीरनो संदेश छे; पण परजीवने आत्मा जीवाडी शके–एम
कांई महावीरनो उपदेश नथी.
समाय नहीं. आत्मा ज तेने कह्यो के जे पोतानी अनंतशक्ति सहित ज्ञानमात्र भावपणे
परिणमी रह्यो छे, ते परिणमननी अस्तिमां रागादि परभावोनी नास्ति छे.
अनेकान्तनुं स्वरूप समजवुं ते तो कोई अपूर्व वात छे, ने ते ज महावीरनाथनो मार्ग
छे.
जीवन पर्यायमां प्रगट्युं. आवुं चैतन्यजीवन ते धर्मीनुं आत्मजीवन छे. शरीरमां के
रागमां आत्मानुं जीवन नथी; चैतन्यभावमां ज आत्मानुं जीवन छे.
पैसानी–आयुकर्मनी के रागनी जरूर पडे; ते बधाय वगर एकलो पोताना
चैतन्यभावथी जीवे एवी आत्मानी जीवन–ताकात छे. आवा आत्माने ज्ञानमां लेतां
पर्याय पण एवुं आनंदमय–अतीन्द्रिय जीवन जीवनारी थई गई; तेमां क्यांय शरीर
साथे धन साथे राग साथे कर्म