Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : रप०० आत्मधर्म : १३ :
आत्मानी अनंतशक्ति छे, ते एकेक जुदी नथी वर्तती, पण एकेक शक्ति
बीजी अनंत शक्तिसहित वर्ते छे; क्षणिकपणुं ने नित्यपणुं बंने तेमां एकसाथे वर्ते
छे; छए कारक एकसाथे वर्ती रह्या छे.
आचार्यदेवे चखाडयो छे–चैतन्यसुखनो अपूर्व स्वाद
ज्ञानस्वरूपे परिणमतो आत्मा सुखस्वरूप पोते ज छे; सुख ज्ञानथी जुदुं
रहेतुं नथी. सुख सर्वगुणोमां व्यापक छे. धर्मीने आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां
सुखनी व्याप्ति छे. आत्माना अनंतगुणनो आनंद सुखशक्तिमां भर्यो छे. ज्यारे
ज्ञानउपयोग तेमां एकाकार थाय त्यारे जेनुं वर्णन वचनथी न थई शके एवो
अतीन्द्रिय निर्विकल्प आनंद थाय छे. आवा आनंदसहितनुं जीवन ते ज आत्मानुं
साचुं जीवन छे; ते सुखजीवनमां बीजा कोईनी अपेक्षा नथी.
सुखनो पर्वत आत्मा, तेमांथी आनंदनुं मधुरुं झरणुं झरे छे. ज्ञानपरिणमन
साथे सुख छे, ज्ञान साथे दुःख तन्मयपणे नथी. सुख ने दुःख बंनेनुं वेदन एक ज
पर्यायमां होवा छतां, तेमांथी सुखनुं वेदन तो ज्ञानधारा साथे तन्मय छे, ने दुःखनुं
वेदन ज्ञानधाराथी अतन्मय छे.–अहो, आवुं सूक्ष्मभावोनुं भेदज्ञान, ते जैनमार्गनी
अलौकिक चीज छे. एक समयमां सुख ने दुःख, बंनेना छ–छ कारको पोतपोतामां
जुदेजुदा वर्ते छे. दुःखना कारको सुखमां नथी, सुखनां कारको दुःखमां नथी. ज्ञानना
कारको रागमां नथी, रागना कारको ज्ञानमां नथी.–आवुं सूक्ष्म भेदज्ञान
अनेकान्तमार्ग सिवाय बीजे क््यांय नथी. आवो अनेकान्तमार्ग ते भगवान
महावीरनो मार्ग छे.
अहो, ज्ञानस्वरूप आत्माने वेदनमां लेतां आत्माना सुखनुं जे वेदन थयुं ते
सुखना एक अंश पासे पण आखा जगतनी बाह्यविभूतिनी कांई ज गणतरी
नथी. अहो, आ तो सर्वज्ञनो मार्ग! तेमां कहेलुं आत्मानुं स्वरूप जेणे श्रद्धा–
ज्ञानमां पचाव्युं ते जीव न्याल थई गयो, तेना जन्म–मरणनो अंत आवी गयो ने
मोक्षसुखनो नमूनो तेणे चाखी लीधो.
ज्ञान–सुख–प्रभुता वगेरे अनंतभावोथी भरेला निजस्वरूपनी रचना करे
एवा सामर्थ्यवाळुं आत्मवीर्य छे. ज्यारे आत्मा ज्ञानस्वरूपे परिणम्यो त्यारे तेमां