छे; छए कारक एकसाथे वर्ती रह्या छे.
सुखनी व्याप्ति छे. आत्माना अनंतगुणनो आनंद सुखशक्तिमां भर्यो छे. ज्यारे
ज्ञानउपयोग तेमां एकाकार थाय त्यारे जेनुं वर्णन वचनथी न थई शके एवो
अतीन्द्रिय निर्विकल्प आनंद थाय छे. आवा आनंदसहितनुं जीवन ते ज आत्मानुं
साचुं जीवन छे; ते सुखजीवनमां बीजा कोईनी अपेक्षा नथी.
पर्यायमां होवा छतां, तेमांथी सुखनुं वेदन तो ज्ञानधारा साथे तन्मय छे, ने दुःखनुं
वेदन ज्ञानधाराथी अतन्मय छे.–अहो, आवुं सूक्ष्मभावोनुं भेदज्ञान, ते जैनमार्गनी
अलौकिक चीज छे. एक समयमां सुख ने दुःख, बंनेना छ–छ कारको पोतपोतामां
जुदेजुदा वर्ते छे. दुःखना कारको सुखमां नथी, सुखनां कारको दुःखमां नथी. ज्ञानना
कारको रागमां नथी, रागना कारको ज्ञानमां नथी.–आवुं सूक्ष्म भेदज्ञान
अनेकान्तमार्ग सिवाय बीजे क््यांय नथी. आवो अनेकान्तमार्ग ते भगवान
महावीरनो मार्ग छे.
नथी. अहो, आ तो सर्वज्ञनो मार्ग! तेमां कहेलुं आत्मानुं स्वरूप जेणे श्रद्धा–
ज्ञानमां पचाव्युं ते जीव न्याल थई गयो, तेना जन्म–मरणनो अंत आवी गयो ने
मोक्षसुखनो नमूनो तेणे चाखी लीधो.