Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 41

background image
: १४ : आत्मधर्म : पोष : रप००
अनंतगुणना शुद्ध कायनी रचना करवारूप वीर्यशक्ति पण भेगी ज छे. सम्यक्त्वादि
निजगुणनी रचना निजवीर्य शक्तिथी आत्मा पोते करे छे, तेमां वच्चे रागनी के बीजा
कोई निमित्तनी जरूर नथी. आवा आत्मानी प्रतीतवडे पंचपरमेष्ठी जेवुं सुख धर्मी
पोतामां अनुभवे छे. अरे, आवा चैतन्यतत्त्वना मंथनमां शांतिना तरंग पण कोई
जुदी जातना होय छे. एना अनुभवना आनंदनुं तो शुं कहेवुं?
* अनंत चैतन्यशक्तिओ कोतराई गई छे, –क््यां? *
आत्मानी आ बधी शक्ति आपणा (सोनगढना) परमागम–मंदिरमां
आरसना पाटियामां कोतराई गई छे...ने धर्मीना अंतरमां भावश्रुतज्ञानना पाटीयामां
ते कोतराई गई छे; अने हे जीव! तुं पण तारा अंतरमां भावश्रुतमां ते कोतरी ले! तो
तने तेनो अगाध महिमा समजाशे. अनंत शक्तिनुं मंदिर आ आत्मा पोते छे. तेनो
जेणे अनुभव कर्यो तेणे समस्त श्रुतज्ञान–परमागमनो सार आत्मामां टंकोत्कीर्ण करी
लीधो, अनंत शक्ति तेना आत्मामां कोतराई गई. अनंत शक्तिवडे तेणे पोताना
आत्माने शणगार्यो...शोभाव्यो...चैतन्यनी परम वीरता ने प्रभुता तेणे प्रगटावी.
असंख्यप्रदेशी आत्मभूमिमां महान आनंद पाके छे. ते आनंदनी रचना रागवडे
नथी थती, पण स्वरूपने रचनारी आत्मानी वीर्यशक्ति वडे ज तेनी रचना थाय छे.
ज्ञान–सुख–वीर्य बधी आत्मशक्तिओ एक साथे निर्मळभावपणे उल्लसे छे. आवो
स्वभाव प्रतीतमां आवतां ज अनंतगुणोमां निर्मळ परिणमन शरू थई जाय छे. ते
परिणमनमां राग न समाय. आवा शुद्ध गुणो ने पर्यायो ते बेमां ज्ञानस्वरूप आत्मा
रहेलो छे. धर्मीनी पर्यायमां चैतन्यना अनंत खजाना खुल्ली गया छे; अनंत शक्तिओ
तेनी पर्यायमां कोतराई गई छे. शब्दोथी लखवामां अनंत शक्तिओ न आवी शके,
अंतरना वेदनमां अनंतशक्तिनो स्वाद आवी जाय छे.
* प्रभुए बतावेली चैतन्यनी प्रभुता; एनी शोभानी शी वात! *
आत्मामां स्वाधीन–प्रभुता छे. वीरनाथनी वाणीए ते प्रभुता प्रकाशी छे; ने
धर्मीए पोतानी प्रभुताने विश्वासमां लीधी छे, पर्यायमां पण तेने प्रभुत्व भास्युं छे...
स्वसंवेदनमां आव्युं छे.
प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयथी आत्माना शुद्ध–अशुद्ध बधा धर्मो