Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : रप०० आत्मधर्म : १७ :
थई जाय; पुण्यभावो पण संकोच–विकास स्वभाववाळा छे, तेनो विकास देखाय ते
कांई सदा विकासरूप नथी रहेतो, अल्पकाळमां पाछो पलटो थई जाय छे. पण
आत्मानो जे विकास अंदरनी शक्तिमांथी प्रगट्यो ते कदी हानि के संकोच पामे
नहि. केवळज्ञानादि लक्ष्मी प्रगटी तेनो विकास अनंत–अनंतकाळ सुधी एवो ने
एवो ज रह्या करे छे, ते केवळज्ञान कदी करमातुं नथी.
आवा आत्माने जाणीने तेनुं जे सेवन करे तेने तो निजशक्तिनो विकास ज
थाय छे. जे आत्माने जाणे नहि, तेने सेवे नहि, तेने तेनो विकास क्यांथी थाय?
शुद्धआत्माने जे जाणे छे ते तेनुं सेवन करे ज छे, ने ते रागनुं सेवन छोडे ज छे,
एटले तेने शुद्धपर्यायरूप परिणमन थाय ज छे.–आवा जीवनी चैतन्यपरिणतिमां
जे शक्तिओ ऊल्लसे छे तेनुं आ वर्णन छे. सत् ‘छे’ तेनुं आ वर्णन छे.
* आत्माने प्रत्यक्ष करवानी मतिश्रुतज्ञाननी अचिंत्य ताकात *
‘आत्मा प्रत्यक्ष थाय ज नहीं केमके अतीन्द्रिय छे’–एम जे माने छे तेणे
आत्मानी स्वसंवेदन–प्रत्यक्षतारूप प्रकाशशक्तिने जाणी नथी; ते तो ईंद्रियोने ज
आत्मा माने छे, एटले ईंद्रियातीत ज्ञाननुं कार्य तेने विश्वासमां आवतुं नथी.
ईंद्रियज्ञानने ज आत्मा मानीने ते अतीन्द्रियआत्मानो अनादर करे छे.
आत्मा अतीन्द्रिय होवा छतां ते अतीन्द्रियने पण स्वसंवेदनवडे प्रत्यक्ष
करवानी मतिश्रुतज्ञानमां ताकात छे; ते ज्ञानमां ईंद्रियनुं अवलंबन स्वसंवेदन
वखते रहेतुं नथी. अरे जीव! भगवान सर्वज्ञपरमात्मा आ तने तारी मोक्षनी
विभूति देखाडे छे. ईंद्रियज्ञानथी ज काम करनारो तुं नथी, तारामां तो स्वयं पोते
पोताने स्वसंवेदनवडे प्रत्यक्ष करवानी ताकात छे. आत्माने स्वसंवेदनवडे प्रत्यक्ष
करवामां बीजा कोईनुं आलंबन रहेतुं नथी, प्रकाशशक्तिना बळे आत्मा पोते
पोताने प्रत्यक्ष करवानुं काम करे छे. शक्तिना स्वसंवेदनवडे आत्मप्रभु आनंदना
झुले झूले छे.
ईंद्रियोथी, निमित्तोथी, रागथी, ईंद्रियज्ञानथी भगवान आत्मा स्वसंवेदनमां
आवे एवो नथी. ज्ञानप्रकाशथी ज्यां स्वसंवेदन करीने आत्माने प्रत्यक्ष कर्यो–त्यां
ईंद्रियोनुं निमित्तोनुं रागनुं के ईंद्रियज्ञाननुं आलंबन रहेतुं नथी. द्रव्य–गुण–पर्याय
त्रणेमां प्रकाशशक्ति होवाथी ते प्रत्यक्ष थाय छे, एवो देखतो भगवान आत्मा छे.
आत्मा