Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : पोष : रप००
आंधळो नथी के पोते पोताने न देखे. स्वयं पोते पोताने (बीजा कोईनी सहाय
वगर) देखे–साक्षात् देखे–अनुभवे एवी प्रकाशशक्तिवाळो आत्मा छे. आत्मामां
आवो प्रकाशस्वभाव होवाथी तेना बधा गुणोमां पण प्रकाशस्वभावपणुं छे, एटले
आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय बधुं स्वरूप स्वसंवेदनप्रत्यक्ष थाय एवो प्रकाशस्वभावी
आत्मा छे.
अहो, वीतरागसंतोनी वाणी!–जेणे जाणी ते न्याल थई जाय छे. गुरुदेव
कहे छे–अहो! आ समयसार तो आत्माने जोवानुं अजोड नेत्र छे, ते आत्मानो
साक्षात्कार करावे छे. अहो! आ पंचमकाळमां पण आत्माने साधीने एकावतारी
थई शकाय–एवी सामग्री आ समयसारमां रही गई छे. ए तो जे अनुभव करे
एने एनी गंभीरतानी खबर पडे. माटे आचार्यदेवे कह्युं छे के आ समयसारमां
निजवैभवथी अमे जे आत्मस्वभाव बतावीए छीए–ते स्वानुभव–प्रत्यक्ष वडे तमे
प्रमाण करजो.
बापु! आ तारा आत्मानी प्राप्तिना अलौकिक मारगडा कहेवाय छे.
भगवान आत्मा स्वयं–प्रकाशमान एवा स्पष्ट स्वसंवेदननी शक्तिवाळो छे.
मतिश्रुतज्ञानने सामान्यपणे परोक्ष कह्या होवा छतां, स्वसंवेदन बळे मिथ्यात्वनो
नाश करतां तेनामां कोई एवी अचिंत्य सातिशय अद्भुत शक्ति प्रगटे छे के ते
आत्माने प्रत्यक्ष करे छे.
शुं मतिश्रुतज्ञानमां आत्मा प्रत्यक्ष थाय?
हा, स्वसंवेदन वखते ते ज्ञानमांय एवी अद्भुतशक्ति खीली जाय छे.
पंचाध्यायी (गाथा ७०६ थी ७१०)मां कहे छे के–मति–श्रुतज्ञान सामान्यपणे परोक्ष
होवा छतां तेमां एटली विशेषता छे के स्वानुभूतिना समयमां ते पण प्रत्यक्ष थई
जाय छे. मिथ्यात्वना नाशथी सम्यग्द्रष्टिजीवने खरेखर कोई एवी अनिर्वचनीय
शक्ति होय छे के जे शक्तिद्वारा आत्मा पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे. अहीं
आचार्यदेवे प्रकाशशक्तिमां ए वात स्पष्ट करी छे.
अहो, ज्ञानशक्तिवडे पोतेपोताना आत्मानुं आवुं स्पष्ट–प्रत्यक्ष
स्वसंवेदन करवुं ते ज वीरनाथप्रभुनी परम प्रसादी छे;
ने ते ज वीरप्रभुना मोक्षनो साचो महोत्सव छे.