Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : रप०० आत्मधर्म : १९ :
नियमा के भजनीय?

कई वस्तु नियमा छे? ने कई वस्तु भजनीय छे? ते संबंधी समजण गतांकमां
१र दाखला वडे आपी हती; ने बीजा दश दाखला विचारवा माटे लख्या हता. ते दश
दाखलानो खुलासो नीचे मुजब छे:–
(१) योगनुं कंपन होय त्यां केवळज्ञान...भजनीय छे, कोई ठेकाणे होय छे ने कोई
ठेकाणे नथी होतुं; जेमके १र गुणस्थान सुधी योगनुं कंपन छे पण केवळज्ञान
नथी; तेरमा गुणस्थाने योगनुं कंपन पण छे ने केवळज्ञान पण छे.
*
उपरनी जेम, केवळज्ञान होय त्यां योगनुं कंपन ते पण भजनीय छे;
चौदमा गुणस्थाने केवळज्ञान होवा छतां योगनुं कंपन नथी.
* अयोगीपणुं (अकंपपणुं) होय त्यां केवळज्ञान नियमथी होय छे;
* केवळज्ञान होय त्यां अयोगीपणुं होय के न होय,–नियम नथी, एटले ते
भजनीय छे.
(२) केवळज्ञान होय त्यां पंचेन्द्रियपणुं...भजनीय छे. सिद्धभगवंतोने केवळज्ञान छे
पण पंचेन्द्रियपणुं नथी.
(३) सम्यग्ज्ञान होय त्यां राग भजनीय छे...चोथा वगेरे गुणस्थाने सम्यग्ज्ञान पण
होय छे ने राग पण होय छे,–बंने साथे होवामां विरोध नथी; अने उपरना
गुणस्थाने क्षीणमोह वगेरे जीवोने सम्यग्ज्ञान होवा छतां राग नथी होतो. आ
रीते सम्यग्ज्ञान साथे रागनुं होवापणुं भजनीय छे, नियमरूप नथी.
(४) अरूपीपणुं होय त्यां चेतनपणुं...भजनीय छे; केमके अरूपी तो अचेतन पण
होई शके छे. जेमके आकाशद्रव्य अरूपी होवा छतां अचेतन छे.
(५) चेतनपणुं होय त्यां अरूपीपणुं नियमा होय छे. कोई पण चेतनवस्तु रूपी होती
नथी, अरूपी ज होय छे.
(६) केवळज्ञान होय त्यां परमऔदारिकशरीर...भजनीय छे...प्रभु सिद्धोने केवळज्ञान
होय छे पण ते शरीर होतुं नथी.
(७) जीवनुं लोकव्यापीपणुं...भजनीय छे...केमके बधा जीवो लोकव्यापी नथी होता,