Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 25 of 41

background image
: २२ : आत्मधर्म : पोष : रप००
विद्वानोनुं मुख्य कार्य बतावतुं पंडितजीनुं आ कथन गुरुदेव घणीवार प्रवचनमां
याद करे छे: “विद्वानो ए मात्र समाजनी वात करवानुं मोढुं ज नथी; तेओ तो
आगमना रहस्यनुं उद्घाटन करवाना अधिकारी छे. एटले, तेमणे एवुं लक्ष राखवुं
जरूरी नथी के अमारा अमुक कथनथी समाजमां केवी असर थशे!–अनुकूळ थशे के
प्रतिकूळ?–हा, जो तेओए कंईपण बीक राखवा जेवुं होय तो सौथी मोटो भय
आगमनो होवो जोईए–के आगमविरुद्ध कंई कथन न थई जाय. विद्वानोनुं मुख्यकार्य
जिनागमनी सेवा छे, अने ते त्यारे ज बनी शके के ज्यारे तेओ समाजना भयथी मुक्त
थईने सिद्धांतनुं रहस्य तेनी सामे राखी शके. काम तो मोटुं छे; अने आ काळमां तेनी
जवाबदारी विद्वानो उपर छे, माटे तेओए बधा प्रकारनी मोहममता छोडीने आ काम
करवुं ज जोईए. समाजनी देखभाळ करवी ए कांई विद्वानोनुं मुख्य काम नथी! जो
तेओ बंने प्रकारना कार्योनो यथास्थान निर्वाह करी शके तो ते उत्तम छे. पण समाजनी
देखभाळ माटे, के समाजना रंजन माटे, आगमने गौण करवा ते व्याजबी नथी. अमने
विश्वास छे के विद्वानो आ निवेदनने पोताना हृदयमां स्थान देशे, अने एवो मार्ग
अंगीकार करशे के जेथी तेमना सद्प्रयत्नना फळरूपे आगमनुं रहस्य वधारे स्पष्टताथी
प्रसिद्धिमां आवे.”
* * * * *
* सौए लक्षमां लेवा जेवुं– *
भाईश्री बाबुभाई (फत्तेपुर) लखे छे के– “आत्मधर्ममां अपाती पू. गुरुदेवनी
प्रवचन प्रसादी अपूर्व छे; नाना–मोटा सर्वेने माटे विशेष आकर्षणनुं कारण छे. गयो
अंक वांच्यो तेथी मने आनंद थयो. जिनमंदिरमां रात्रे के वहेली सवारे–परोढिये
अष्टद्रव्यथी पूजन थाय नहि, तेमज सामग्री धोवी के अभिषेक करवो ते पण योग्य
नथी. तेमज पूजनसामग्रीमां सचित्त वस्तुओ वपराय नहीं. सौ मुमुक्षुमंडळोए आ
प्रमाणे जिनमंदिरोमां पूजनपद्धति करवी जोईए.” (पू. गुरुदेवे पण हमणां प्रवचनमां
कहेल के रात्रे आवी क्रियाओ करवी ते मार्ग नथी.) रात्रिभोजनादि पण जैनगृहस्थने
शोभे नहि; तेमां त्रसहिंसा संबंधी तीव्र कषाय होवाथी, जैनमार्गमां खूब भारपूर्वक
तेनो निषेध छे. वीरनाथना मोक्षगमननुं अढी हजारमुं वर्ष चाले छे त्यारे जैनसमाज
जागृत बने, ने ज्ञानशुद्धि साथे क्रियाशुद्धि वडे पण जैनधर्मनी प्रभावना वधारे ए सौनुं
कर्तव्य छे.