Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : रप०० आत्मधर्म : २७ :
आ अंकमांथी शोधी काढवाना दश वाक््यो:–
(स्वाध्याय–प्रचारनी आ योजनामां त्रणसो–चारसो भाई–बहेनो होंशथी भाग
लई रह्या छे, ते सौने धन्यवाद.)
१. वाह जिनवाणीनी अद्भुत शोभा! ते जिनवाणी...
र. परमागम–मंदिरमां पण आ शक्तिना वर्णननो भाग ‘सोनेरी’ ...
३. परथी जीवे एवो पराधीन आत्मा नथी; आत्मा तो...
४. स्वसंवेदनवडे आत्मप्रभु...
प. वीरनाथना मोक्षगमनना आ रप००मा वर्षमां सौ जागीए, ने बाळकोने...
६. शब्दोथी लखवामां अनंत शक्तिओ न आवी शके, अंतरना वेदनमां...
७. आवुं जैनशासन समजीने महावीरप्रभुना...
८. स्वरूप–जीवन भगवानना अनेकान्तमार्गथी प्राप्त थयुं छे. –ए ज...
९. महावीरने ओळखवाथी आत्मा चैतन्यस्वरूपे ओळखाय छे; एटले.....
१०. दशमा बोल तरीके तमारे आ अंकमां जे जे तीर्थंकर भगवंतोना नाम
आव्या होय ते शोधवाना छे.
–संपादक आत्मधर्म, सोनगढ (३६४रप०)
* * * * *
अढी हजार वर्ष पहेलांं आ भरतक्षेत्रमां
साक्षात् तीर्थंकरपणे भगवान महावीरे जे
आत्महितकारी ईष्ट–मिष्ट उपदेश आप्यो ते आजेय
आपणा उपर उपकार करी रह्यो छे. आवा महावीर
भगवानना उपकारनी अंजलिरूपे योजायेल निबंध
योजनामां अनेक भाई–बेनोए उत्साहथी भाग
लीधो छे; ते सौने धन्यवाद!