Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : पोष : रप००
सेवनने छोड; अने भक्तिथी जैनमार्गने ओळखीने तेनुं सेवन कर.–तारुं महान कल्याण
थशे.
* जैन–साधु केवा होय? *
रत्नत्रयसंयुक्त जे साधु शुद्धभाववडे आत्माने ध्यावे छे ते साधु अबद्ध छे,
तेओ कर्मथी बंधाता नथी पण अल्पकाळे मुक्ति पामे छे. ते मुनिनुं चारित्र आत्मारूप
छे. शुभराग ते कांई खरूं चारित्र नथी, अर्थात् ते आत्मारूप नथी. आत्मामां एकाग्र
थईने आत्मारूप थयेलुं चारित्र ते खरूं चारित्र छे. एवा चारित्र वडे जे मोक्षने साधे छे
ते साधु छे.
ते साधु भगवंतो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सहित शुद्ध संयमी छे, जिन–रूप
धारण करनारा छे, अने शुद्धआत्माना अनुभवरूप अर्थने साधनारा छे. ते महात्मा,
त्रणलोकने जाणनारा एवा शुद्धआत्माने ध्यावे छे–ए ज तेमनुं महाव्रत छे.
धर्मध्यानसंयुक्त एवा ते साधु शुद्धधर्मने प्रकाशे छे. सर्वज्ञजिनदेवे जे तत्त्वो कह्यां छे
तेनुं ज तेओ प्रकाशन करे छे.
अहो, सर्वज्ञदेवे आत्मानो शुद्ध धर्म प्रकाश्यो छे, अने मोक्षने साधनारा साधुओ
पण सर्वज्ञदेवना वचनअनुसार ज शुद्धआत्माने प्रकाशे छे. आ रीते राग वगरना
शुद्धआत्माने प्रकाशनारा एवा वीतरागमार्गने, तथा एवा जैनसाधुने ज धर्मी जीव
श्रद्धे छे; एनाथी विरुद्ध मार्गने ते कदी मानतो नथी. अहो, आवा वीतरागमार्गी
जैनसाधुओ शुद्धभाव वडे पोताना आत्माने तो भवसमुद्रथी तारे छे, तेम ज
शुद्धमार्गना उपदेश वडे जगतना भव्य जीवोने पण तेओ तारनारा छे. आ रीते
जैनसाधुओ ज तरण–तारण छे; तेओ जहाजसमान छे. जहाज पोते तरे छे ने तेमां
बेसनारने पण तारे छे, तेम जैनसाधुओ पोते रत्नत्रयवडे तरे छे ने तेमना उपदेशेला
रत्नत्रयमार्गने अनुसरनारा जीवोने पण तारे छे.
–आवा तरण–तारणहार साधु भगवंतोने नमस्कार हो.
* खरो पंडित कोण छे? *
शास्त्र भणे ते पंडित, ने न आवडे ते मूर्ख–एम नथी; पण
आत्माने जाणे ते पंडित, ने न जाणे ते मूर्ख–एम ज्ञानी कहे छे.
परम औदारिक शरीरमध्ये जेओ केवळज्ञानादि गुणोसहित बिराजे छे एवा