वीरनाथनी वाणी प्रकाशे छे. ए रीते प्रत्येक पदार्थना स्वाधीन
अनंतस्वभावोने जाणतां, अने पोताना आत्मामां रहेला पोताना
ज्ञानादि अनंतस्वभावोने जाणतां, जीवने स्व–परनुं भेदज्ञान थाय
छे, तेने क्यांय मोह रहेतो नथी, ने ते पोताना निजस्वभावरूपे
परिणमे छे. निजस्वभावरूप परिणमन ते ज जीवनुं हित छे. ते ज
ईष्ट छे, ने एवा ईष्टनो उपदेश महावीरप्रभुना अनेकान्त–शासनमां
छे. अने ते शासन सर्वजीवोने हितकारी छे. भगवाने करेलो ईष्ट
तेनो नमूनो अहीं आप्यो छे. वीरप्रभुना अढी हजारमा
निर्वाणोत्सवनी आ मंगल प्रसादी छे. (ब्र. ह. जैन)
एम बे स्वभाव एकसाथे वर्ते छे. तेमां सामान्यरूप एवो द्रव्यस्वभाव ते पर्यायनुं कारण
नथी, पण विशेषरूप एवो पर्यायस्वभाव ते पर्यायनुं कारण छे. सामान्य द्रव्यस्वभाव
पर्यायो पण सदा एकरूप ज थवी जोईए.–पण एम नथी. पर्यायो विविध थाय छे ने तेनुं
कारण आत्मानो पर्यायस्वभाव छे; ते–ते पर्यायरूपे थवानी