Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : पोष : रप००
निमित्त पण एक साथे एक काळे होवा छतां बंने स्वतंत्र पोतपोताना अस्तित्वमां
वर्ते छे; निमित्तनुं अस्तित्व उपादानना कारणे नथी, तेमज उपादाननुं अस्तित्व
निमित्तना कारणे नथी; बंनेना षट् कारको पोतपोतामां ज छे. जेम जीवनी गतिमां
निमित्त धर्मास्ति छे, छतां त्यां जीव अने धर्मास्ति बंने वस्तु भिन्न छे, बंनेना छ
कारको एकबीजाथी भिन्न छे; जीवने कारणे धर्मास्ति नथी, के धर्मास्तिने कारणे जीव
नथी. तेम धर्मास्तिकाय वत् जगतना जे कोई निमित्तो छे ते बधाय निमित्तो,
उपादानथी जुदा छे; उपादान अने निमित्त बंने पदार्थो पोतपोतामां स्वतंत्र काम
करे छे. एकने कारणे बीजानुं अस्तित्व नथी. वस्तुनुं आवुं स्वरूप जाणीने भेदज्ञान
थयुं ते महावीरप्रभुनो मार्ग छे, ते ज मोक्षनो पंथ छे.
अनेकान्तरूप वस्तुमां परनुं आलंबन नथी, स्वाधीनता छे.
वस्तु अनेकान्तस्वरूप छे एटले द्रव्य–पर्यायस्वरूप छे; आत्माना द्रव्य ने
पर्याय ते बंने चैतन्यलक्षणथी लक्षित छे. आवी वस्तुने अनुभवतां वीतरागी
आनंदनो अनुभव थाय छे. स्वभाव तरफ ढळेला जीवने खातरी थाय छे के मारा
स्वभावना अनुभवमां मने कोई रागनुं के निमित्तनुं अवलंबन नथी; तेनुं तो
अवलंबन छूटी गयुं छे. वस्तुनुं पोतानुं स्वरूप ज आवुं छे, ते कांई बीजा कोई वडे
थयेलुं नथी. द्रव्य अने पर्याय बंने पोताना स्वरूपथी ज वस्तुमां सत् छे, तेमां जेम
द्रव्य बीजाना कारणे नथी तेम पर्याय पण बीजाना कारणे नथी. आवुं वस्तुस्वरूप
नक्की करनार बीजा कोईना आलंबननी आशा राख्या वगर, स्वाधीनपणे पोताना
स्वभावमां परिणमे छे.
ज्ञान–लक्षणे शुं प्रसिद्ध कर्युं?
ज्यां लक्षण छे त्यां लक्ष्य जरूर छे ज.
ज्ञान अने आत्माने अभेद अनुभवतां सम्यग्दर्शन थाय छे, ने त्यारे खबर
पडे छे के ज्ञानलक्षणवडे लक्षित आवो अखंड आत्मा, अनंत धर्मोथी एकरूप छे.
ज्ञानना लक्ष्यमां क्यांय राग नथी आवतो; रागनुं लक्षण तो बंधन छे, रागनुं
लक्षण कांई ज्ञान नथी. ज्ञान लक्षण पोते राग वगरनुं छे, ते रागथी भिन्न
आत्माने लक्षित करीने तेनो अनुभव करावे छे.