Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: महा : रप०० आत्मधर्म : ७ :
महावीरप्रभु बिराजमान थशे; प्रभुना मार्गने शोभावनारा आचार्य
कुंदकुंदभगवाननुं मोटुं–अद्भुत–गंभीर–सुशोभित चित्रपट (आरसमां
कोतरेलुं) स्थापशे; ने तेमनी बंने बाजु तेमना बे हाथ जेवा अमृतचंद्राचार्यदेव
तथा पद्मप्रभमुनिराज बिराजशे. पंचपरमेष्ठीना प्रसाद जेवा पांच
परमागमोनी स्थापना थशे....केटलाय सोनेरी शिखर अने धर्मध्वजथी
परमागममंदिर शोभी ऊठशे. आम देव–गुरु ने परमागमना महिमानो ए
अनेरो उत्सव हशे.
* उत्सवमां बीजुं शुं शुं थशे?
भारतदेशमांथी ने परदेशमांथीये केटलाय साधर्मीओ आवशे, होंशे–होंशे आवशे
ने आनंद उत्सवमां भाग लेशे; बब्बे वखत गुरुदेवना प्रवचनमां अध्यात्म–
अमृतनी रसधारा वरसशे, ने श्रोताजनो तो मंत्रमुग्ध थईने आत्मभावनामां
झूमी ऊठशे.
* वाह! ए प्रवचन शेना उपर थशे?
हा, ए वात तमे महत्त्वनी पूछी. जुओ, सवारे तो समयसारनो संवर अधिकार
वंचाशे; तेमां जीवने मोक्षना हेतुभूत एवी संवरदशा केम प्रगटे? एटले के अपूर्व
भेदज्ञान अने सम्यग्दर्शन केम थाय? ते वात गुरुदेव समजावशे.
अने बपोरना प्रवचनमां पद्मनंदी पच्चीसीमांथी ऋषभजिनस्तोत्र वंचाशे.
‘ऋषभ’ एटले आदिनाथ भगवान; अथवा ‘वृषभ’ नो अर्थ (वृष एटले धर्म,
तेनाथी जे शोभे छे–ते) महावीरादि धर्मतीर्थंकरो–एवो पण थाय छे; जे कोई
जीवो धर्मना धारक छे तेओ वृषभ छे; एटले बधा तीर्थंकरोने ‘वृषभ’ शब्दथी
कही शकाय छे. एवा भगवंतोनुं अने तेमना मार्गनुं स्वरूप गुरुदेव एवी
अद्भुत शैलीथी समजावशे के ते भगवंतो प्रत्ये भक्तिथी हृदय ऊभराई जशे.
–आम एककोर भेदज्ञाननी धारा, ने बीजीकोर भक्तिरसनी धारा, तथा
साथेसाथे वीरनाथ तीर्थंकरना पंचकल्याणकनां पावन द्रश्यो–वगेरे महान लाभ
मळशे, अने तेमांथी परमागमना सारभूत शुद्धात्मतत्त्वने तारवी लेवुं ते सर्वे
मुमुक्षुओनुं महान ध्येय हशे; एटले जाणे साधकभावनो कोई अनेरो अपूर्व
उत्सव आपणे उजवता हईशुं–धन्य हशे ए जोनारा पण!
* अहो, आ बधुं सांभळतां आनंद थाय छे,–पण, प्रवचनमां आटला बधा
माणसो स्वाध्याय मंदिरमां समाशे केवी रीते?