Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : महा : २५००
अमारा सोनगढमां मंगल – महोत्सव
आंगणीये अवसर आनंदना

* पोष वद तेरसे एक मुमुक्षुभाई बहारगामथी सोनगढ आव्या. आवतांवेंत
चारेकोर हर्षभरी धमाल देखीने आश्चर्यथी पूछ्युं–भाई, आ बधुं शुं छे? शुं
आजे कांई मंगल उत्सव छे!
–हा भाई! आजे तो केसरछांटी कंकोतरी मोकलाय छे, तेमां गुरुदेव “ करीने
मंगळ करे छे......तेनो आ उत्सव छे.
* शेनी छे ए कंकोतरी?
ले, एनां ढोलनगारां तो वरसथी वागी रह्या छे, ते शुं हजी तमने नथी
संभळाया?–आ तो परमागम–मंदिरनो महोत्सव आव्यो छे....ने फागण सुद
तेरसनुं मूरत छे.
* एम! परमागममंदिरनो महोत्सव आवी ग्यो!
जी हा....हवे तो गाजते–वाजते एकदम नजीक आवी पहोंच्यो छे.
* त्यारे तो परमागम–मंदिर पण तैयार थई गयुं हशे!
अरे, तैयार तो एवुं मजानुं थई गयुं छे के एनी अद्भुत शोभा तो तमे
सोनगढ आवीने जोशो त्यारे आश्चर्य पामशो.
* उत्सवनी तैयारी पण चालती हशे!
हा, जाणे आखुं सोनगढ ज बदलाई गयुं होय!–एम बधी नवरचना थई रही
छे. तमने थशे के आपणुं स्वाध्यायमंदिर शुं आवडुं मोटुं हतुं! अने वर्द्धमान
महावीर प्रभुना पधारवाथी ‘सुवर्णनगरीनी शोभा’ केवी वृद्धिगत थई गई
छे! ते तो तमने नजरे जोये ज ख्याल आवशे.
* वाह...! ए तो नजरे जोशुं....पण उत्सवमां शुं थशे?
उत्सवमां तो घणुं–घणुं थशे. जुओ, महावीरप्रभुना पंचकल्याणक थशे. गामे–
गामना ने देश–परदेशना हजारो साधर्मीओ पधारशे; शेठश्री शांतिप्रसादजी
शाहूजीना सुहस्ते परमागम–मंदिरनुं उद्घाटन थशे....पछी तेमां मोटा मोटा