* पोष वद तेरसे एक मुमुक्षुभाई बहारगामथी सोनगढ आव्या. आवतांवेंत
आजे कांई मंगल उत्सव छे!
–हा भाई! आजे तो केसरछांटी कंकोतरी मोकलाय छे, तेमां गुरुदेव “ करीने
मंगळ करे छे......तेनो आ उत्सव छे.
ले, एनां ढोलनगारां तो वरसथी वागी रह्या छे, ते शुं हजी तमने नथी
संभळाया?–आ तो परमागम–मंदिरनो महोत्सव आव्यो छे....ने फागण सुद
तेरसनुं मूरत छे.
जी हा....हवे तो गाजते–वाजते एकदम नजीक आवी पहोंच्यो छे.
अरे, तैयार तो एवुं मजानुं थई गयुं छे के एनी अद्भुत शोभा तो तमे
सोनगढ आवीने जोशो त्यारे आश्चर्य पामशो.
हा, जाणे आखुं सोनगढ ज बदलाई गयुं होय!–एम बधी नवरचना थई रही
छे. तमने थशे के आपणुं स्वाध्यायमंदिर शुं आवडुं मोटुं हतुं! अने वर्द्धमान
महावीर प्रभुना पधारवाथी ‘सुवर्णनगरीनी शोभा’ केवी वृद्धिगत थई गई
छे! ते तो तमने नजरे जोये ज ख्याल आवशे.
उत्सवमां तो घणुं–घणुं थशे. जुओ, महावीरप्रभुना पंचकल्याणक थशे. गामे–
गामना ने देश–परदेशना हजारो साधर्मीओ पधारशे; शेठश्री शांतिप्रसादजी
शाहूजीना सुहस्ते परमागम–मंदिरनुं उद्घाटन थशे....पछी तेमां मोटा मोटा