Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: महा : रप०० आत्मधर्म : ९ :
(लेखांक) (अंक ३६१ थी)
१०
चालु
अहो, जिनमार्गनो उपदेश सर्वे जीवोनुं हित करनार छे; ते ज
ईष्ट–उपदेश छे. वीतरागी आचार्योनी परंपराथी शुद्ध जैनमार्गनो जे
उपदेश चाल्यो आवे छे ते ज आ परमागमोमां कुंदकुंदस्वामीए संघर्यो
छे. आ उपदेश आत्मानुं शुद्ध स्वरूप बतावीने जीवनुं हित करनार छे.
आवा हितकारी परमागम सोनगढना परमागम–मंदिरमां कोतराई
गया छे, अने तेनो भाव धर्मीना अंतरमां कोतराई गयो छे. आ
परमागमनी मधुरी प्रसादी गुरुदेव आपणने रोज आपी रह्या छे....
ने आत्मधर्म द्वारा आप सौ आनंदथी ते वांची रह्या छो.
अहो, अद्भुत हितकारी जिनमार्ग!
तेनो बोध सर्वे जीवोनुं भलुं करनार छे; तेनुं सेवन करो.

बोधप्राभृतनी शरूआतमां बहुश्रुतधारी शुद्ध सम्यक्त्व–संयमसहित अने
कषायरहित एवा शुद्ध आचार्योने वंदन करीने, कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–अहो! जिनवरदेवे
सर्वे जीवोने बोध पमाडवा अर्थे एटले के सर्वे जीवोना हितने माटे जे उपदेश कह्यो छे ते
ज उपदेश हुं आ बोधप्राभृतमां कहीश. आ उपदेश केवो छे? के छकायजीवोने सुखकर छे;
जे छकायजीवोनी हिंसाथी रहित छे तेथी छए कायजीवोने माटे सुखकर छे. जिनमार्गमां
कहेलो आवो उत्तम वीतरागी बोध हुं आ बोधप्राभृतमां कहीश, तेने हे भव्य जीवो! तमे
आदरपूर्वक सांभळो! ते सांभळतां, तेना भावनुं घोलन करतां तमारा बोधनी शुद्धि थशे.
जिनशासन बधा भावोनुं ज्ञान करावे छे, पण तेमां शुद्धभावोनुं ग्रहण करावे छे
ने हिंसादि अशुद्धभावोने ते छोडावे छे. पापभावोनुं ने पापनां स्थानोनुं ज्ञान करावे,
पण ते पापनी पुष्टि कदी न करे, पापथी छोडावे. एम जैनमार्गमां सर्वत्र
वीतरागभावनुं ज तात्पर्य छे, क्यांय पण हिंसादिनुं पोषण तेमां नथी; आवो