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उपदेश चाल्यो आवे छे ते ज आ परमागमोमां कुंदकुंदस्वामीए संघर्यो
छे. आ उपदेश आत्मानुं शुद्ध स्वरूप बतावीने जीवनुं हित करनार छे.
आवा हितकारी परमागम सोनगढना परमागम–मंदिरमां कोतराई
गया छे, अने तेनो भाव धर्मीना अंतरमां कोतराई गयो छे. आ
परमागमनी मधुरी प्रसादी गुरुदेव आपणने रोज आपी रह्या छे....
ने आत्मधर्म द्वारा आप सौ आनंदथी ते वांची रह्या छो.
सर्वे जीवोने बोध पमाडवा अर्थे एटले के सर्वे जीवोना हितने माटे जे उपदेश कह्यो छे ते
ज उपदेश हुं आ बोधप्राभृतमां कहीश. आ उपदेश केवो छे? के छकायजीवोने सुखकर छे;
कहेलो आवो उत्तम वीतरागी बोध हुं आ बोधप्राभृतमां कहीश, तेने हे भव्य जीवो! तमे
आदरपूर्वक सांभळो! ते सांभळतां, तेना भावनुं घोलन करतां तमारा बोधनी शुद्धि थशे.
पण ते पापनी पुष्टि कदी न करे, पापथी छोडावे. एम जैनमार्गमां सर्वत्र
वीतरागभावनुं ज तात्पर्य छे, क्यांय पण हिंसादिनुं पोषण तेमां नथी; आवो