Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : महा : २५००
शुद्ध जैनउपदेश वीतरागी आचार्योनी परंपराथी चाल्यो आवे छे ते ज आ
परमागमोमां कुंदकुंदस्वामीए संघर्यो छे. ते उपदेश जीवनुं हित करनार छे. एवा
हितकारी परमागम आपणे अहीं (सोनगढमां) परमागम–मंदिरमां कोतराई गया छे;
तेनो भाव धर्मीना आत्मामां कोतराई गयो छे.
अहो, जिनमार्गनो आ उपदेश जीवोने धर्ममार्गमां सावधान करे छे ने कुमार्गथी
छोडावे छे. माटे हे भव्य जीवो! तमे आ उपदेशनुं श्रवण करो.
धर्मनुं आयतन क्युं छे? परमार्थे सम्यक्त्वादि वीतरागधर्मरूपे परिणमेलो
आत्मा, ते पोते धर्मनो आश्रय, एटले धर्मनुं स्थान छे; आवा परमार्थ धर्म–आयतनने
ओळखीने व्यवहारमां जिनमंदिर ते धर्मनुं आयतन छे. तेमां जे जिनबिंबनी स्थापना
छे ते पण वीतराग होय छे. जेम धर्म वीतराग छे, राग वगरनो छे, तेम तेनी
स्थापनारूप प्रतिमा वगेरे पण वीतराग होय छे, रागनां चिह्न तेमां होतां नथी. आवा
जिनमार्गने हे भव्य जीवो! तमे ओळखो; अने जिनमार्गथी विपरीत एवा कुमार्गथी
दूर रहो.
धर्मनुं साचुं आयतन जे पोतानो आत्मा, तेने भूलीने एकला बाह्य
आयतनना सेवन वडे धर्मनी प्राप्ति थती नथी. बहारथी धर्मनी प्राप्ति केम थाय?
अनंत–गुणधाम आत्मा ते धर्मनुं स्थान छे, तेना सेवनथी सम्यक्त्वादि धर्मनी प्राप्ति
थाय छे. मोक्षमार्ग स्वद्रव्यना आश्रये थाय छे, परना आश्रये मोक्षमार्ग थतो नथी.
* मोक्षमार्ग निर्ग्रंथ छे *
सूत्रप्राभृतनी २३मी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के–नग्नमुनिपणुं ते ज
मोक्षमार्ग छे, बाकी बधा उन्मार्ग छे. जिनशासनमां वस्त्रधारी जीवने मुक्ति नथी,–पछी
भले तीर्थंकर पण होय;–ज्यां सुधी ते वस्त्रसहित छे ने नग्न–मुनिदशा अंगीकार करता
नथी त्यां सुधी ते पण मोक्षने पामता नथी. वस्त्रसहित दशामां सम्यग्दर्शन होई शके
पण मुनिपणुं होई शके नहीं. वस्त्रसहित दशामां मुनिपणुं मानवुं ते सन्मार्ग नथी, ते
तो उन्मार्गनी श्रद्धा छे, तीर्थंकरोना निर्मोहमार्गनी तेने खबर नथी.
रे नग्न मुक्तिमार्ग छे.....बाकी बधा उन्मार्ग छे.
णग्गो विमोक्खमग्गो सेषा उम्मगया सव्वे।
चारित्रप्राभृत गा. ३९ मां कहे छे के–