परमागमोमां कुंदकुंदस्वामीए संघर्यो छे. ते उपदेश जीवनुं हित करनार छे. एवा
हितकारी परमागम आपणे अहीं (सोनगढमां) परमागम–मंदिरमां कोतराई गया छे;
तेनो भाव धर्मीना आत्मामां कोतराई गयो छे.
ओळखीने व्यवहारमां जिनमंदिर ते धर्मनुं आयतन छे. तेमां जे जिनबिंबनी स्थापना
छे ते पण वीतराग होय छे. जेम धर्म वीतराग छे, राग वगरनो छे, तेम तेनी
स्थापनारूप प्रतिमा वगेरे पण वीतराग होय छे, रागनां चिह्न तेमां होतां नथी. आवा
जिनमार्गने हे भव्य जीवो! तमे ओळखो; अने जिनमार्गथी विपरीत एवा कुमार्गथी
दूर रहो.
अनंत–गुणधाम आत्मा ते धर्मनुं स्थान छे, तेना सेवनथी सम्यक्त्वादि धर्मनी प्राप्ति
थाय छे. मोक्षमार्ग स्वद्रव्यना आश्रये थाय छे, परना आश्रये मोक्षमार्ग थतो नथी.
भले तीर्थंकर पण होय;–ज्यां सुधी ते वस्त्रसहित छे ने नग्न–मुनिदशा अंगीकार करता
नथी त्यां सुधी ते पण मोक्षने पामता नथी. वस्त्रसहित दशामां सम्यग्दर्शन होई शके
पण मुनिपणुं होई शके नहीं. वस्त्रसहित दशामां मुनिपणुं मानवुं ते सन्मार्ग नथी, ते
तो उन्मार्गनी श्रद्धा छे, तीर्थंकरोना निर्मोहमार्गनी तेने खबर नथी.