विरोध नथी; परंतु तेमां जे कर्म छे ते तो बंधनुं कारण छे, अने मोक्षनुं कारण तो जे
एक परम ज्ञान छे ते ज छे, ते ज्ञान पोते कर्मथी छूटुं ने छूटुं मुक्त ज छे.
गौतमस्वामी–कुंदकुंदाचार्यस्वामी वगेरे वीतरागसंतोए जैनशासन टकावीने, तीर्थंकरोनी
गादीनुं स्थान खाली रहेवा दीधुं नथी; तीर्थंकरोना उपदेशनी परंपरा वीतरागी संतोए
आज सुधी टकावी राखी छे. अहो, महाभाग्ये आजे आवो वीतरागमार्ग प्राप्त थाय छे.
आवो मार्ग टकावनारा वीतराग संतो तेओ पण ‘जिनप्रतिमा’ छे. जिननो उपदेश
अने ते संतोनो उपदेश एक ज प्रकारनो छे, तेमां फेर नथी. अहो, साक्षात् जिनतूल्य
आवा संतो पूजनीय छे. तीर्थंकरोनो विरह ए संतोए भूलावी दीधो छे, ने तीर्थंकरोना
उपदेशनो साक्षात्कार कराव्यो छे. तेथी साधक कहे छे के अहो, संतोना प्रतापे आ
पंचमकाळमां अमने जिननो मार्ग मळ्यो छे एटले पंचमकाळे पण जिननो विरह अमने
स्वानुभवनो रस रेड्यो छे, आ तो वीतरागी सन्तोनी
वाणी! आ ‘आत्मभाषा’ छे. वाणी तो जोके जड छे पण
भाषा ते ‘आत्मभाषा’ छे. एना भावने जे समजे तेने
अपूर्व आत्मजीवन प्रगटे.