Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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ज्ञानी–गुरुगमे शुद्धात्मारूप लक्ष्यने जे जाणतो नथी ने रागवडे मोक्षमार्ग
साधवा मांगे छे तेने मार्गनी प्राप्ति कदी थती नथी. मोक्षमार्ग तो वीतराग–
सुखरूप छे, ने राग तो दुःखरूप छे; पोते दुःखरूप एवो राग ते मोक्षसुखनुं कारण
केम थाय? बोधस्वरूप आत्माने जे बुझे–जाणे ते साचो बोध छे. बोधस्वरूपने न
जाणे तेने बोध कोण कहे? रागमां कांई एवी ताकात नथी के ज्ञानस्वरूप आत्माने
जाणे. ज्ञानस्वरूप आत्मा जेमां जणाय एवा बोधनो उपदेश महावीर भगवाने
मोक्षमार्गमां कर्यो छे. श्रीगुरु पासे जई विनयवंत शिष्ये पूछयुं–हे प्रभो! ज्ञाननी
प्राप्ति करावो. त्यारे श्रीगुरु कृपा करीने तेने एम कहे छे के हे भव्य! ज्ञाननी प्राप्ति
अंतर्मुख आत्मामांथी थाय छे माटे तुं बहारनुं (अमारुं पण) लक्ष छोडीने तारा
आत्मानी सन्मुख था. परने लक्ष्य बनावतां ज्ञानप्राप्ति नहि थाय; स्व. आत्माने
लक्ष्य बनावतां तने ज्ञानप्राप्ति थशे.
अहो, जैनशासननुं अलौकिक ज्ञान, कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रसिद्ध कर्युं छे. अहा,
जैनगुरुओ केवा परम निस्पृह छे! तेओ पोतानो पण आश्रय छोडवानुं कहीने
जीवने निज स्वभावनो ज आश्रय करावे छे. आवा वीतरागी निस्पृह गुरुओए
बतावेला सत्य मोक्षमार्गनो आश्रय छोडीने जेओए कुगुरुना कुमार्गनो आश्रय
लीधो तेओ पोताना हितने चुकीने पोतानुं अहित करी रह्या छे. तेवा जीवो उपर
करुणा करीने आ वीतरागी संतोए सत्यमार्ग जगतमां प्रसिद्ध कर्यो छे. भाई, आ
मार्गनी आराधनाथी ज तने मोक्षमार्गनुं साचुं ज्ञान थशे, ने अल्पकाळमां तारा
भवदुःखनो अंत आवी जशे. माटे जिनमार्गने जाणीने भक्तिथी आत्मानी
आराधना कर.
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जिनरूपने जाण्युं नहीं परनी करी पंचात,
क््यांथी सुख तुजने मळे? दुःखी थयो दिनरात.