एवा अरिहंत परमात्मा ते देव छे. अने तेमणे कहेला मार्गने सांधतां वच्चे साधकने
एवा पुण्य थई जाय छे के जेना फळमां लोकोत्तर धर्म–अर्थ–काम (स्वर्गादि वैभव) पण
सहेजे मळे छे. जोके धर्मीने तेनी वांछा नथी, पण जैनमार्गनुं सेवन करनारने
अरिहंतदेवनी सेवाना रागथी चक्रवर्ती वगेरे जेवा उत्तम धर्म–अर्थ–काम होय छे तेवा
बीजा मतमां होता नथी, तेथी निमित्त तरीके अरिहंतदेव ते धर्म–अर्थ–काम तथा
मोक्षना देनारा छे–एम कह्युं छे. चक्रवर्ती, तीर्थंकर, ईन्द्रपद वगेरे उत्तम पुण्यपदवीओ
अरिहंतना मार्गमां ज होय छे, ते पदवी धारक जीवो अरिहंतमार्गना ज उपासक होय
छे. कुमतना सेवनमां एवा ऊंचा पुण्य होतां नथी.
मळे तेनी कांई धर्मीने वांछा नथी, छतां ते होय छे तेथी तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. खरेखर
तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वीतरागभाव अने मोक्ष तेनी प्राप्तिमां भगवान निमित्त
छे, केमके भगवान पासे तो तेनो भंडार छे, ने तेनी ज उपासनानो उपदेश भगवाने
कर्यो छे. मोक्षसुखना कारणरूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र, दीक्षाप्रवज्या ते भगवान
अरिहंतदेवना ज मार्गमां छे, माटे तेओ ज तेना दातारदेव छे. जैनमार्गमां देव–गुरु–
धर्म केवा होय? ते कहे छे:–