Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : महा : २५००
जैनमार्गमां देव–गुरु–धर्मनुं
अद्भुत वर्णन
जैनमार्गमां सर्वज्ञदेव ते ज रत्नत्रयना दातार छे.
सर्वज्ञदेवना मार्गनो अचिंत्य महिमा; तेना सेवनथी भवना अंतनी खातरी.
भवना अभावनो भणकार न आवे तो तें भगवानने मान्या ज नथी.
बोधप्राभृत मागशर वद आठम; श्री कुंदकुंदस्वामी आचार्यपद–प्रतिष्ठादिन

मोक्षने साधनारुं ज्ञान केवुं होय? तेनी वात आचार्यदेवे समजावी छे. ‘देव’
केवा होय? तो कहे छे के मोक्षसुखने जे द्ये ते देव छे. जेना सेवनथी मोक्षसुख मळे छे
एवा अरिहंत परमात्मा ते देव छे. अने तेमणे कहेला मार्गने सांधतां वच्चे साधकने
एवा पुण्य थई जाय छे के जेना फळमां लोकोत्तर धर्म–अर्थ–काम (स्वर्गादि वैभव) पण
सहेजे मळे छे. जोके धर्मीने तेनी वांछा नथी, पण जैनमार्गनुं सेवन करनारने
अरिहंतदेवनी सेवाना रागथी चक्रवर्ती वगेरे जेवा उत्तम धर्म–अर्थ–काम होय छे तेवा
बीजा मतमां होता नथी, तेथी निमित्त तरीके अरिहंतदेव ते धर्म–अर्थ–काम तथा
मोक्षना देनारा छे–एम कह्युं छे. चक्रवर्ती, तीर्थंकर, ईन्द्रपद वगेरे उत्तम पुण्यपदवीओ
अरिहंतना मार्गमां ज होय छे, ते पदवी धारक जीवो अरिहंतमार्गना ज उपासक होय
छे. कुमतना सेवनमां एवा ऊंचा पुण्य होतां नथी.
धर्म–अर्थ–काम–मोक्ष दीए ते देव एम कह्युं, पण जेनी पासे जे होय ते आपे!
भगवान पासे तो मोक्ष छे तेथी तेओ मोक्षना ज दाता प्रधानपणे छे. वच्चे पुण्यफळ
मळे तेनी कांई धर्मीने वांछा नथी, छतां ते होय छे तेथी तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. खरेखर
तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वीतरागभाव अने मोक्ष तेनी प्राप्तिमां भगवान निमित्त
छे, केमके भगवान पासे तो तेनो भंडार छे, ने तेनी ज उपासनानो उपदेश भगवाने
कर्यो छे. मोक्षसुखना कारणरूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र, दीक्षाप्रवज्या ते भगवान
अरिहंतदेवना ज मार्गमां छे, माटे तेओ ज तेना दातारदेव छे. जैनमार्गमां देव–गुरु–
धर्म केवा होय? ते कहे छे:–