Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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विशुद्ध दयारूप धर्म छे; सर्वसंगना परित्यागरूप प्रवज्या छे, एवी
प्रवज्यावाळा गुरु छे ते ज जैनमार्गमां गुरु छे; अने मोह जेनो सर्वथा छूटी गयो छे
एवा सर्वज्ञ ते ज देव छे. आवा देव–गुरु–धर्मनुं सेवन ते भव्यजीवोनो उदय करनारुं
छे. अहो, आवो मार्ग प्रसिद्ध करीने जे आचार्यभगवाने मोक्षमार्गना बधा विघ्नो दूर
करी दीधां छे–एवा कुंदकुंदआचार्यभगवाननी आचार्यपदवीनो आजे महान दिवस छे.
अहो ‘देव’ तो वीतरागता देनारा छे, वीतरागतानो ज उपदेश भगवाने दीधो छे.
अने जैनमार्गमां गुरु पण क्षणे क्षणे वीतरागताने ज भावनारा छे. अहो भव्य
जीवो! आवा मार्गनुं सेवन करो. आवा मार्गने सेवनारा भव्यजीवोने मोक्षमार्गनो
उदय थाय छे.
भगवानना मार्गमां तो सर्वसंगना परित्यागरूप प्रवज्या कीधी छे; वस्त्रादिना
परिग्रहवाळी प्रवज्या (मुनिदशा) जैनमार्गमां होती नथी; वस्त्रसहित तो श्रावकदशा
होय छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी पवित्र जळथी भरेलुं आ जैनमार्गरूपी उत्तम–
पवित्र सुतीर्थ, तेमां हे भव्य जीवो! तमे स्नान करो. अहो, जैनमार्गमां अमारा सर्वज्ञ
परमात्मा पासे पूर्ण ज्ञान–वीतरागता छे, तेथी तेमना मार्गना सेवनथी ज वीतरागता
ने सर्वज्ञता मळे छे; माटे अमारा देव ज अमने रत्नत्रयना दातार छे, जगतना बीजा
कुदेवो पासे रत्नत्रय छे ज क््यां–के बीजाने आपे? निमित्त तरीके पण शुद्धरत्नत्रयवाळा
ज देव होय. आ रीते ‘देव’ ने स्वीकारे तेने रत्नत्रयनी प्राप्ति थाय ज. आचार्यदेवे पण
कह्युं छे के भगवाने कहेला आत्मस्वरूपने सांभळीने तुं स्वानुभव वडे तेने प्रमाण
करजे, एटले देव–गुरु पासे आवीने स्वानुभव करे एवा जीवो ज साचा श्रोता छे. जे
देव पासे आव्यो, सर्वज्ञदेवने जेणे ज्ञानमां स्वीकार्या ते जीव पोते पण तेमनो उपदेश
झीली, मोहने तोडीने स्वानुभववडे ‘देव’ जेवो थई ज जशे. सर्वज्ञने स्वीकार्या ने ते
जीव सर्वज्ञ जेवो न थाय–एम बनी शके नहि. गमे तेवी कटोकटीना काळमां पण, जे
धर्मी जीवे सर्वज्ञने पोताना हृदयमां बेसाडया छे ते जीव मार्गथी डगतो नथी, तेने हवे
लांबा भव होतां नथी. भवरहित एवा भगवान सर्वज्ञने जेणे स्वीकार्या ते हवे
अल्पकाळमां भवरहित थये ज छूटको. रागथी पार सर्वज्ञनो जे स्वीकार छे ते ज
रागरहितपणानो पुरुषार्थ छे; रागरहित सर्वज्ञने स्वीकार्या ते हवे रागमां अटके नहीं
एक समयमां पूर्णानंद स्वरूप परमात्माने