निर्बाधपणे शुद्धात्मानी प्राप्ति करावनारो छे ते उपदेश झीलीने जे जीव
चिदानंदस्वभावने साधवा नीकळ्यो तेना पुरुषार्थनो वेग स्वभाव तरफ होय छे. ते
परभाव सामे जुए नहि, परभावनी प्रीतिमां ते अटके नहि. ‘आ रागनो कणियो शुभ
छे, ते मने कंईक लाभ करशे, कंईक मदद करशे–एम रागनी सामे जोवा मोक्षार्थी जीव
ऊभो न रहे,....ए तो निरपेक्ष थईने वीरपणे वीतरागस्वभाव तरफनी श्रेणीए चडे
छे. तीर्थंकरोनी ने वीरसंतोनी वाणी जीवने पुरुषार्थ जगाडनारी छे. ते कहे छे के अरे
जीव! तुं वीतरागमार्गने साधवा नीकळ्यो ने त्यां वच्चे पाछो वळीने रागनी सामे
जोवा ऊभो रहे छे?–अरे नमाला! शुं तुं वीतरागमार्गने साधवा नीकळ्यो छे? शुं आम
रागनी सामे जोये वीतरागमार्ग सधाता हशे? तुं वीतरागमार्ग साधवा नीकळ्यो ने
हजी तने रागनो रस छे?–छोडी दे ए रागनुं अवलंबन, छोड एनो प्रेम!–ने वीर
थईने उपयोगने झुकाव तारा स्वभावमां. वीतरागमार्गनो साधक शूरवीर होय छे, ते
एवो कायर नथी होतो के क्षणिक रागनी वृत्तिथी लूंटाई जाय ‘हरिनो मारग छे
शूरानो....कायरनुं नहीं काम जो... ’ जेम अरिहंतो मोहशुत्रने जीतवामां शूरवीर छे, तेम
अरिहंतनो भक्त एवो साधकजीव पण शूरवीर होय छे.
हाकल वागी...रजपूतने लडाईमां जवानुं थयुं; रजपूत–माताए हसते मुखडे तिलक