Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : महा : २५००
हरिनो मारग छे शूरानो
मोक्षना साधक शूरवीर होय छे,
ते रागनी प्रीतिमां रोकाता नथी
(पंचास्तिकाय गाथा १ उपरना प्रवचनमांथी)
मोक्षना साधक जीवो शूरवीर होय छे; ते माटेनुं दृष्टांत आपे पाछळना चित्रोमां
जोयुं; अहीं ते संबंधी प्रवचन आप्युं छे. भगवान तीर्थंकरदेवनो उपदेश–के जे
निर्बाधपणे शुद्धात्मानी प्राप्ति करावनारो छे ते उपदेश झीलीने जे जीव
चिदानंदस्वभावने साधवा नीकळ्‌यो तेना पुरुषार्थनो वेग स्वभाव तरफ होय छे. ते
परभाव सामे जुए नहि, परभावनी प्रीतिमां ते अटके नहि. ‘आ रागनो कणियो शुभ
छे, ते मने कंईक लाभ करशे, कंईक मदद करशे–एम रागनी सामे जोवा मोक्षार्थी जीव
ऊभो न रहे,....ए तो निरपेक्ष थईने वीरपणे वीतरागस्वभाव तरफनी श्रेणीए चडे
छे. तीर्थंकरोनी ने वीरसंतोनी वाणी जीवने पुरुषार्थ जगाडनारी छे. ते कहे छे के अरे
जीव! तुं वीतरागमार्गने साधवा नीकळ्‌यो ने त्यां वच्चे पाछो वळीने रागनी सामे
जोवा ऊभो रहे छे?–अरे नमाला! शुं तुं वीतरागमार्गने साधवा नीकळ्‌यो छे? शुं आम
रागनी सामे जोये वीतरागमार्ग सधाता हशे? तुं वीतरागमार्ग साधवा नीकळ्‌यो ने
हजी तने रागनो रस छे?–छोडी दे ए रागनुं अवलंबन, छोड एनो प्रेम!–ने वीर
थईने उपयोगने झुकाव तारा स्वभावमां. वीतरागमार्गनो साधक शूरवीर होय छे, ते
एवो कायर नथी होतो के क्षणिक रागनी वृत्तिथी लूंटाई जाय ‘हरिनो मारग छे
शूरानो....कायरनुं नहीं काम जो... ’ जेम अरिहंतो मोहशुत्रने जीतवामां शूरवीर छे, तेम
अरिहंतनो भक्त एवो साधकजीव पण शूरवीर होय छे.
आ वात समजाववा राजपुत्रनुं दृष्टांत: एक रजपूत, जुवानजोध ताजो ज
परणीने आवेलो. त्यां तो राज उपर शत्रु आव्या, तेने जीतवा माटे लडाईमां जवानी
हाकल वागी...रजपूतने लडाईमां जवानुं थयुं; रजपूत–माताए हसते मुखडे तिलक