Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: महा : रप०० आत्मधर्म : २७ :
करीने दीकराने विदाय आपी. बहादूर रजपूताणीए पण बहादूरीथी पतिने विदाय आपी.
पण–ते रजपूत लडाईमां जतां जतां नवी परणेली पत्नी उपर घणा प्रेमने लीधे वारंवार
पाछो वळीने तेना मोढा सामे जोया करे....झट तेना पग उपडे नहि. खरे टाणे तेनी आ
ढीलाश जोईने वीर रजपूताणीथी रहेवायुं नहि, हाकल पाडीने तेणे कह्युं; ऊभा रहो. आ
मोढानो मोह तमने रोके छे! आ मोढुं भेगुं लेता जाव एटले तमारुं चित्त लडाईमां लागे.
–एम कहीने तेणे पोतानुं माथुं कापीने तेनी सामे धरी दीधुं. रजपूत तो आभो ज बनी
गयो....तेनी माता कहे छे: अरे कायर! तें रजपूताणीना दूध पीधां छे; ने आ लडाईमां
जवाना शूरवीर थवाना टाणे बायडीनुं मोढुं जोवा तुं रोकाणो? छोड ए वृत्ति! शुं आ
रागनी वृत्तिमां रोकावाना टाणां छे? अरे, आ तो शूरवीर थईने शत्रुने जीतवाना टाणां
छे, अत्यारे रागनी वृत्तिमां रोकावानुं न होय....तेम–
जे जीव चैतन्यने साधवा नीकळ्‌यो, ने एम कहे छे के रागथी कांईक लाभ थशे,
क््यांक रागना अवलंबनथी जराक लाभ थशे,–एम रागनी वृत्ति सामे जोईने कायरपणे
जे अटक्यो छे, ने अंतरमां चैतन्यमां झुकावतो नथी. एवा कायरजीवने जिनवाणी
माता शूरातन चडावे छे के अरे जीव! तुं शूरवीर थईने चैतन्यने साधवा नीकळ्‌या छो,
तुं वीरमार्गमां मोहने जीतवा नीकळ्‌यो छो, तो रागनी रुचि तने न पालवे. रागनी
सामे जोईने रोकावाना आ टाणां नथी; आ तो रागनी रुचि तोडीने शूरवीरपणे
मोहशत्रुने मारवाना ने चैतन्यने साधवाना टाणां छे. वीरमार्गना साधक शूरवीर होय
छे, ते एवा कायर नथी होता के रागनी वृत्तिमां अटकी जाय. वीरनो वीतरागमार्ग
शूरानो छे. ए तो रागना बंधन तोडीने शूरवीरपणे मोहशत्रुने हणे छे ने चैतन्यने
साधे छे.
सुवर्णना कणिया
(अष्टप्राभृत प्रवचनोमांथी)
* रत्नत्रयनी आराधनामां स्वद्रव्यनुं ज सेवन छे, परद्रव्यनुं सेवन नथी. आवा
रत्नत्रयने जे जीव आराधे छे ते आराधक छे अने एवा आराधक जीव
रत्नत्रयनी आराधनावडे केवळज्ञान पामे छे, ए वात जिनमार्गमां प्रसिद्ध छे.
रत्नत्रयनी आराधना परना परिहारपूर्वक आत्माना ध्यानथी थाय छे.
* सम्यग्दर्शनथी जे शुद्ध छे ते शुद्ध छे. सम्यग्दर्शननो आराधक जीव अल्पकाळे
सिद्धि पामे छे. सम्यग्दर्शन वगरनो जीव ईष्टसिद्धिने पामतो नथी. आ रीते
मोक्षनी सिद्धि माटे सम्यग्दर्शननी आराधना प्रधान छे.