करीने दीकराने विदाय आपी. बहादूर रजपूताणीए पण बहादूरीथी पतिने विदाय आपी.
पण–ते रजपूत लडाईमां जतां जतां नवी परणेली पत्नी उपर घणा प्रेमने लीधे वारंवार
पाछो वळीने तेना मोढा सामे जोया करे....झट तेना पग उपडे नहि. खरे टाणे तेनी आ
ढीलाश जोईने वीर रजपूताणीथी रहेवायुं नहि, हाकल पाडीने तेणे कह्युं; ऊभा रहो. आ
मोढानो मोह तमने रोके छे! आ मोढुं भेगुं लेता जाव एटले तमारुं चित्त लडाईमां लागे.
गयो....तेनी माता कहे छे: अरे कायर! तें रजपूताणीना दूध पीधां छे; ने आ लडाईमां
जवाना शूरवीर थवाना टाणे बायडीनुं मोढुं जोवा तुं रोकाणो? छोड ए वृत्ति! शुं आ
रागनी वृत्तिमां रोकावाना टाणां छे? अरे, आ तो शूरवीर थईने शत्रुने जीतवाना टाणां
छे, अत्यारे रागनी वृत्तिमां रोकावानुं न होय....तेम–
माता शूरातन चडावे छे के अरे जीव! तुं शूरवीर थईने चैतन्यने साधवा नीकळ्या छो,
तुं वीरमार्गमां मोहने जीतवा नीकळ्यो छो, तो रागनी रुचि तने न पालवे. रागनी
सामे जोईने रोकावाना आ टाणां नथी; आ तो रागनी रुचि तोडीने शूरवीरपणे
मोहशत्रुने मारवाना ने चैतन्यने साधवाना टाणां छे. वीरमार्गना साधक शूरवीर होय
छे, ते एवा कायर नथी होता के रागनी वृत्तिमां अटकी जाय. वीरनो वीतरागमार्ग
शूरानो छे. ए तो रागना बंधन तोडीने शूरवीरपणे मोहशत्रुने हणे छे ने चैतन्यने
साधे छे.
रत्नत्रयने जे जीव आराधे छे ते आराधक छे अने एवा आराधक जीव
रत्नत्रयनी आराधना परना परिहारपूर्वक आत्माना ध्यानथी थाय छे.
मोक्षनी सिद्धि माटे सम्यग्दर्शननी आराधना प्रधान छे.