Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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धर्मात्मा एम अनुभवे छे के हुं पोते मारा ज्ञान–दर्शन–चारित्रनी निर्मळ
पर्यायमां छुं; रागमां हुं नथी, शरीरमां हुं नथी; ने मारी निर्मळ ज्ञानादि पर्यायमां राग
के शरीर नथी, मारो आत्मा ज मारी ज्ञानादि पर्यायमां तन्मय वर्ते छे, ने मारी ते
पर्यायोमां मारो आत्मा ज आलंबन छे.–अंतर्मुख थईने आवुं आलंबन जेणे लीधुं तेणे
पोताना आत्मामां परमागमरूप भावश्रुतनी प्रतिष्ठा करी. आवुं शुद्धात्मानुं आलंबन
ते ज सर्व जिनागमनो सार छे.
भावलिंगी मुनि तेमज तेना पेटामां सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा पण, पोताना
ज्ञानादिनी निर्मळ पर्याय साथे आत्माने अभेद अनुभवे छे; ते वात भगवान
कुंदकुंदाचार्यदेव भावप्राभृतनी ५८ मी गाथामां बतावे छे–
आदा खु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्ते य।
आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे।।५८।।
अहो, ज्ञान–दर्शन–चारित्रनो जे भाव मारामां प्रगट्यो छे तेमां मारो आत्मा ज
तन्मय छे, तेमां आत्मानुं ज आलंबन छे; ते ज्ञानादिमां कोई रागनुं, शास्त्रना शब्दोनुं
के परनुं आलंबन नथी. मारी ज्ञानपरिणति रागने ताबे थयेली नथी, ते तो आत्मामां
स्ववश वर्ते छे.
अहो, जन्म–मरणना आंटा जेने मटाडवा होय तेने माटे आ वात छे. वीर
थईने वीरना मार्गने साधवानी आ वात छे. आ वीरनो मार्ग छे, कायरनो मार्ग नथी.
शूरवीर थईने एटले रागथी पार थईने, अंदर चैतन्य–कारणपरमात्मानो जेणे स्वीकार
कर्यो तेने मोक्षमार्गरूपी कार्य थवा ज मांड्युं छे. जेने आवुं कार्य नथी प्रगट्युं तेणे अंदर
कारणपरमात्मानो स्वीकार ज कर्यो नथी. जे कारण परमात्माने स्वीकारे छे तेने तो तेनुं
सम्यग्दर्शनादि कार्य पण विद्यमान वर्ते ज छे. अहो, कारण–कार्यनी संधिनी आ अपूर्व
वात छे.
धर्मी जीव जाणे छे के मारा सम्यग्दर्शनमां, मारा सम्यग्ज्ञानमां मारो आत्मा ज
मने अवलंबनरूप छे. कोई बीजाना अवलंबने मारी श्रद्धा–ज्ञानपर्याय थई नथी.
शास्त्रना अवलंबने के रागना अवलंबने मारी सम्यक्त्वादि पर्याय थई