फागण : २५०० : आत्मधर्म : ५:
जैनशासनना अमूल्य घरेणां जेवा समयसारादि पंच
परमागम आरसना सिंहासनमां बिराजे छे.
कुंदकुंदस्वामीना पवित्र चरणचिह्न बिराजमान छे.
आरसनी सुंदर ४प० शिलाओमां युरोपना मशीनथी कोतरेला
पांच परमागम वीतरागीझलक वडे परमागममंदिरने शोभावी
रह्या छे ने जगतने वीतरागमार्गनो संदेश आपी रह्या छे.
अनेक गाथाओ सुवर्ण–अंकित छे.
तीर्थंकरोना पूर्वभवोना तेमज अनेक वीतरागी संतोना
वैराग्यरसभरेला पचास उपरांत चित्रो आत्मिक आराधनानी
प्रेरणा आपी रह्या छे.
चारे बाजु आरसनी सुंदर बांधणीवाळुं मंदिर, सोनेरी
शिखरो उपर जैनधर्मनो विजयध्वज फरकावी रह्युं छे. कुल
१९ कळश छे.
जैनधर्मना देव–गुरु–शास्त्रनो आवो त्रिवेणीसंगम जोईने
मुमुक्षु आत्माने प्रसन्नता थाय छे ने रत्नत्रयमार्गमां उत्साह
जागे छे. पू. श्री कानजीस्वामीना श्रीमुखथी रत्नत्रयमार्गनुं
स्वरूप सांभळतां मुमुक्षुजीवो आनंदथी चैतन्यनी आराधना
करे छे.
श्रीगुरुमुखथी परमागमनो वीतरागी संदेश सांभळवा आप
पण सोनगढ आवो, ने जीवनमां अमूल्य लाभ ल्यो.
बंधुओ, सर्वे सतोए कहेली वात, जे वारंवार गुरुदेव पण कही
रह्या छे, ते महत्त्वनी वातने बराबर ध्यानमां राखजो के
वीतरागभावे शुद्धात्मतत्त्वनी उपासना करवी ते सर्वे
जिनागमनो सार छे.... ते ज साचो धार्मिकउत्सव छे.... ते ज
देव–गुरुनी आज्ञा छे ने ते ज मुमुक्षुनुं जीवन छे. आत्मामां
आवी आराधनानो मंगल–महोत्सव ‘आजे ज’ शरू करो.
“आराधना ए ज मोक्षनो महोत्सव छे.”