Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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:६: आत्मधर्म फागण : २५०० :
“मंगल आत्मा गुरुदेव”
अहो गुरुदेव! वीरनाथप्रभुनां मार्गमां कुंदकुंदप्रभुना
शासननी अजोड प्रभावना करीने आप अमारा उपर जे
महान उपकार करी रह्या छो, ते देखीने विदेहना समवसरणनी
वातुं याद आवे छे. आपश्री जेवा ‘मंगल’ आत्माना सेवनथी
अमने पण मंगलनी प्राप्ति थई छे.
अहो, महावीर भगवानना मोक्षगमनना आ
अढीहजारमा वर्षमां तेमना मंगल पंचकल्याणक उजववानुं
सौभाग्य आपना प्रतापे अमने प्राप्त थयुं छे. प्रभुनो मार्ग
आपे अमने आप्यो छे, ने जिनवाणी नुं अमृत आप अमने
दररोज पीवडावी रह्या छो. अत्यारे आपनी छायामां
‘स्थापना–निक्षेपे’ पंचकल्याणक नजरे जोईए छीए; थोडा
वखत पछी आपनी छायामां ‘भावनिक्षेपे’ पंचकल्याणक नजरे
जोईशुं. अहा, धन्य हशे ए अवसर!
आत्महितकारी पंचकल्याणक जयवंत वर्तो.