वातुं याद आवे छे. आपश्री जेवा ‘मंगल’ आत्माना सेवनथी
अमने पण मंगलनी प्राप्ति थई छे.
आपे अमने आप्यो छे, ने जिनवाणी नुं अमृत आप अमने
दररोज पीवडावी रह्या छो. अत्यारे आपनी छायामां
वखत पछी आपनी छायामां ‘भावनिक्षेपे’ पंचकल्याणक नजरे
Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).
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