Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
परमार्थ सिद्धभक्ति, के जे मोक्षनुं कारण छे ते केवी छे? शुद्धात्मतत्त्वमां लीन
एवा शुद्धोपयोग वडे रागनो सर्वथा नाश थाय छे, ने सर्व रागनो नाश थतां जीवने
परसंग अने परभाव वगरनी शुद्ध आत्मदशा प्रगटे छे, तेनुं नाम परमार्थ सिद्धभक्ति
छे, ने तेना वडे जीव सिद्धिने पामे छे. सिद्धप्रत्येनो शुभराग ते कांई परमार्थ
सिद्धभक्ति नथी; ते राग तो मोक्षनो अंतराय करनारो छे.
ते कारणे मोक्षेच्छु जीव असंग ने निर्मम बनी,
सिद्धो तणी भक्ति करे, उपलब्धि जेथी मोक्षनी. (१६९)
बापु! रागनो प्रेम करी करीने तो अनंतकाळथी तुं भवसागरमां गोथा खाई
रह्यो छे ने कलेशमां बळी रह्यो छो. वीतरागताना अमृतरसने एकवार चाख....तो तने
मोक्षमार्ग हाथमां आवे.
० मोक्षने माटे वीतरागता कर्तव्य छे.
० वीतरागता माटे स्वद्रव्यनो आश्रय कर्तव्य छे.
० स्वद्रव्यना आश्रये मोक्ष छे, ने परद्रव्यना आश्रये संसार छे.
० मोक्षप्राभृतमां आचार्यदेव कहे छे के–
पर द्रव्यरतने दुर्गति, उत्तम गति स्वद्रव्यथी;
ए जाणी निजमां रत बनो, विरमो तमे परद्रव्यथी.
अनंत तीर्थंकरोए कहेलो, मोक्षनो आ सत्यार्थ ईष्ट उपदेश कुंदकुंदस्वामीए
परमागमोमां प्रसिद्ध कर्यो छे.
बापु! परद्रव्यना आश्रये तो राग थशे, ते रागनुं वेदन तने शांति नहीं आपे.
(राग आग दहे सदा, तातें, समामृत, सेवीए.) जेम अग्नि छे ते दाह उत्पन्न करनार
छे,–पछी ते अग्नि लीमडाना लाकडानो होय के चंदनना लाकडानो होय; चंदनना
लाकडानो अग्नि पण बाळे ज छे. तेम राग ते जीवने बळतरा करनार छे,–पछी ते राग
अशुभ होय के शुभ होय; अरिहंतादि प्रत्येनो शुभ राग पण जीवने अशांतिनुं ज
कारण छे. अरे बापु! परद्रव्यना आश्रये ते कांई शांति होय? अंदर तारुं स्वद्रव्य
अतीन्द्रिय आनंदथी छलोछल भरेलुं छे तेमां उपयोगने एकाग्र करीने विश्रांति ले; तेमां
ज परम शांति छे, ने ते ज मोक्षनुं कारण छे. मोक्षने माटे तो सर्वे प्रत्येना सर्व रागनो
सर्वथा क्षय करवा जेवो छे. कोई पण प्रत्येनो जराय राग