Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : १३ :
चैतन्यना अमृतभोजन तो सम्यग्द्रष्टिनेय होय छे, पण मुनिपणामां तो घणी वीतरागी
लीनता थई जाय छे. एवी धन्यदशा भगवान महावीरप्रभुने आजे प्रगटी.
सामे आम्रवृक्ष नीचे महावीर–मुनिराज ध्यानमां बिराजी रह्या छे. चारेकोर
हजारो सभाजनो बेठा छे. ने गुरुदेव सौने अद्भुत चारित्रभावनामां झुलावी रह्या छे.
महावीरनाथनी छायामां चारित्रना आश्रममां बेठाबेठा २५ हजार भव्यजीवो
मुनिदशाना अत्यंत महिमापूर्वक श्रीगुरुमुखेथी झरता चारित्रना वीतरागरसनुं पान
करी रह्या छे.
गुरुदेव कहे छे के: जेने मोक्ष पामवो हशे तेणे आवी चारित्रदशा अंगीकार कर्ये
ज छूटको छे. अहो, चारित्रमां आनंदनुं वेदन छे. माताना पेटमां पण समकिती जीवने
आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन होय छे; ते ज्यारे वैराग्य पामीने दीक्षा ल्ये ने
ध्यानमां ठरे–ते वखतना आनंदनी शी वात? तीर्थंकर भगवान दीक्षाप्रसंगे ‘णमो
सिद्धाणं’ कहीने सिद्ध भगवंतोने नमस्कार करे छे. दीक्षा पछी तरत निर्विकल्प ध्यानमां
अप्रमत्तदशा प्रगटे छे. वाह, ए आनंददशा एवी छे के घोर उपसर्ग के परिषह वखतेय
ते डगता नथी. आत्माना ज्ञान पछी घणी वीतरागी स्थिरता वधी जाय त्यारे आवी
चारित्रदशा प्रगटे छे; तेमां अपार शांति छे. समकितीने चोथा गुणस्थानेय अतीन्द्रिय
शांति तो छे, पण मुनिदशामां तो ते शांति घणी ज वधी जाय छे, शांतिनी रेलमछेल
चारित्रदशामां होय छे: अहो! आवी चारित्रदशा अमने क्यारे आवे!–एम धर्मी
भावना भावे छे.
चैतन्यनुं ध्रुवधाम एवुं स्थान छे के ज्यां आनंद पाके छे. अमारा असंख्य प्रदेशी
चैतन्यक्षेत्रमां अतीन्द्रिय आनंदना पाक पाके छे. अमारो आत्मा ज आखो सुखधाम छे,
पछी बीजुं शुं काम छे? ‘शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयं ज्योति सुखधाम. ’
अनंत तीर्थंकरो जे पंथे विचर्या ते पंथे अमे विचरनारा छीए. आत्मानो अकंप
–स्वभाव छे; आत्माना अनंतगुणोनो अंश स्वानुभूतिमां प्रगटे छे. मोक्षमार्ग तो
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सहित छे; ते शुद्धोपयोगी चारित्रदशा वखते बहारमां पण
दिगंबरदशा ज होय छे ए वात तो जगतमां प्रसिद्ध छे. आवा प्रसिद्ध मुनिमार्गने आजे
महावीर भगवाने अंगीकार कर्यो; प्रभु आजे परमेष्ठीपदमां बिराज्या.
आवा महावीर मुनिराज परम–प्रशांतमुद्रामां चारित्रआश्रममां बिराजी रह्या
छे. ठसोठस भराई गयेला चारित्रआश्रममां २५–३० हजार भव्यजीवो परम
भक्तिपूर्वक