Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
चारित्रदशाने अनुमोदी रह्या छे. खरेखर! चारित्रदशा जगतमां सर्वश्रेष्ठ छे–ए वात
वीरनाथमुनिराज मौनपणे जगतमां प्रसिद्ध करी रह्या छे.
विशेषमां ए पण हर्षनी वात छे के सोनगढमां प्रभुना दीक्षाकल्याणकनो प्रसंग
ज्यां थयो ते स्थाननुं नाम पण ‘रत्नाकर चारित्राश्रम’ छे. खरेखर आ चारित्रनो ज
आश्रम छे. ज्ञान–दर्शनप्रधान शुद्धोपयोगनो आश्रम केवो अद्भुत–शांत होय तेनुं
ताद्रश वातावरण अहीं द्रश्यमान थाय छे.
सोनगढमां श्वेतांबर समाजना भाईओए पोतानी चारित्रआश्रम–संस्थानो
सदुपयोग महावीरप्रभुना दीक्षाकल्याणक माटे करवामां सहकार आप्यो ते पण एक
खुशीनी वात छे. दिगंबर जैनसमाजनो आवो एक भव्य कल्याणक महोत्सव श्वेतांबर
जैनसमाजनी संस्थामां उजवाय ने सुंदर सहकारभर्युं वातावरण फेलाय ते
महावीरप्रभुना आ २५०० मा निर्वाण महोत्सव माटे एक घणी सारी निशानी छे.
सोनगढना आ प्रसंगने अनुसरीने भारतभरमां सर्वे तीर्थोमां ने सर्वे गाममां आवुं
सहकारभर्युं वातावरण फेलाय–तो केवुं उत्तम!!
चारित्रआश्रममां भगवानना चारित्रनो धन्य प्रसंग बनतां चारित्रआश्रम
खरेखर चारित्रनो आश्रम बन्यो. अहा, तीर्थंकरभगवाननी साथे जाणे आपणेय
चारित्रदशा लई लईए! एवी हृदयोर्मि ऊछळती हती–
तसु शुद्ध दर्शनज्ञानमुख्य पवित्र आश्रम पामीने,
प्राप्ति करुं हुं साम्यनी, जेनाथी शिवप्राप्ति बने.
आवी उत्तम भावनापूर्वक चारित्रनो महोत्सव ऊजवीने भक्तजनो ज्यारे पुन:
नगरीमां आवता हता त्यारे मुख्य रस्ताओ उपरनी भीड अपार हती. महावीरनाथने
मुनिदशामां देखीदेखीने आनंद अने आश्चर्य साथे एवो भ्रम थई जतो हतो के आ शुं?
फरीने चोथोकाळ क्यांथी आव्यो?
आजना दीक्षाकल्याणक साथे भक्तोना आनंदनी वृद्धि करवा माटे ज जाणे
फागण सुद ११ आवी गई. आजे पू. श्री शांताबेननो जन्मदिवस हतो, तेथी गुरुदेव
तेमने त्यां आहारदान माटे पधार्या हता; पू. बेनश्री–बेन बंने बहेनोना उपकारोने याद
करीने समस्त भक्तजनो खुशी मनावता हता.
बपोरे पू. गुरुदेवना मंगल हस्ते जिनबिंब उपर मंत्रना अंकन्यास–विधिनी