Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : १५ :
शरूआत थई. अहा, शी भव्य प्रतिमा छे! परमागमनी भव्यताने शोभावे एवा
वीरनाथ भगवानने देखतां हृदयमां वीतरागतानी लहेरो उठी रही छे. अत्यारे
परमागममां बिराजमान महावीरनाथनी ए भव्य जिनमुद्रासन्मुख जोतां जोतां आ
ऊर्मिओ लखाई रही छे. बहारथी तो परमागममंदिर भव्य लागे ज छे–पण अंदर
आवीने ज्यारे तमे आ वीतरागताना पिंड एवा महावीर भगवानने जुओ त्यारे ज
तमने तेनी भव्यतानो खरो ख्याल आवे. (जेम शुद्धात्माने जाणे त्यारे ज परमागमनी
गंभीरतानो साचो ख्याल आवे छे तेम! शुद्धात्माने जाण्या वगर कोई कहे के में
परमागमनी गंभीरताने जाणी लीधी–तो ते शुं सत्य छे?–ना; तेम वीरनाथ
भगवाननी सर्वज्ञताने ओळख्या वगर तेमनी वाणीरूप परमागमने पण ओळखी
शकाता नथी. अहा! परमागममां प्रभुसन्मुख बेठा छीए त्यारे चारेकोर परमागममांथी
वीतरागरसनी मधुरी लहेरीओ आवी रही छे. आवा वीतरागी वातावरण वच्चे,
वीतरागताना साधक गुरुए, वीतरागदेव उपर पवित्र अंकन्यास लख्या...ने ए देखीने
पू. बेनश्रीबेन वगेरे सौए अत्यंत प्रसन्नताथी भक्ति अने जयजयकारथी
परमागममंदिरने भरी दीधुं.
अहा! जाणे के वीरनाथना समवसरणमां बेठा छीए ने तेमनी दिव्यध्वनिना
पडघा परमागम मंदिरमां चारेकोर संभळाई रह्या छे...एवी मधुरी रचना परमागमनी
थई गई छे. एक वखत आवीने शांतिथी तमे परमागममंदिरमां प्रभुसन्मुख बेसशो
त्यारे ज तमने तेनी विशेषतानो ख्याल आवशे–जेम चैतन्यशांतिनी गंभीरतानो
ख्याल तेमां प्रवेश्या पछी ज आवे छे तेम.
फागण सुद १२ ना रोज महावीर–मुनिराज आहारचर्या माटे पधार्या अने
तीर्थंकर–मुनिराजने आहारदान कराववानो धन्यप्रसंग भाईश्री चंद्रकान्त हरिलाल
दोशीने त्यां थयो हतो. आ महान लाभथी तेमना कुटुंबीजनोने घणो ज आनंद थयो
हतो. कहानगुरुए पण मुनिराजने परम भक्तिथी आहारदान दीधुं हतुं. अहा, अमारा
सोनगढमां दिगम्बर मुनिराज पधारे, ने तेमने आहारदाननो लाभ मळे–ए तो धन्य
प्रसंग छे! आवी अत्यन्त ऊर्मिथी आहारदान करी रहेला कहानगुरुनी मुनिभक्ति
देखीने हजारो भक्तो आनंदित थया हता बपोरे वीरप्रभुने केवळज्ञान थयुं, ईन्द्रोए
केवळज्ञाननी पूजा करी. अहो, वीरप्रभु सर्वज्ञ थया...अरिहंत थया तेमने नमस्कार हो.