: १६ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
१. ज्यां जिनमंदिर हशे त्यां हंमेशांं दर्शन करीश.
२. आत्महित माटे हंमेशांं जैनशास्त्रनुं वांचन करीश.
३. जैनमार्गनुं ज परम भक्तिथी सेवन करीश.
१. रात्रे कदी खाईश नहीं
२. अणगळ पाणी पीश नहीं.
३. लौकिक सिनेमा जाईश नहीं.
बंधुओ तथा बहेनो! आपणे सौए वीरप्रभुना आ अढीहजारमा निर्वाण–
महोत्सवमां (वीर. सं. २५०० तथा २५०१ नी दीवाळी सुधी) उपरना छ बोलनुं जरूर
पालन करवानुं छे ते माटे नीचेमुजब स्वीकृतिपत्र आप वेलासर पोस्टकार्डमां लखी
मोकलो; आळस करशो नहीं.
महावीरप्रभुना अढीहजारमा निर्वाणमहोत्सव निमित्ते आत्मधर्ममां सूचवेला छ
बोलनुं हुं पालन करीश. ने वीरप्रभुना मार्गमां आत्महित साधीश.
ली: पूरुंनाम, उमर तथा गाम.
नाना–मोटा सौने भाग लेवा निमंत्रण छे. दीवाळी पहेलांं अढीहजारथी वधु
स्वीकृतिपत्र आवी जवानी खातरी छे. स्वीकृतिपत्र लखी मोकलनारनां नाम वैशाख
मासमां छापीशुं. सरनामुं – संपादक आत्मधर्म: सोनगढ ()