: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : १७ :
ईन्द्रसभा (१)
सोनगढमां परमागममंदिर प्रतिष्ठामहोत्सव–प्रसंगे
पंचकल्याणकना प्रथम द्रश्यमां ईन्द्रसभा थई हती. प्रभु श्री
महावीर भगवाननो आत्मा पूर्वभवमां अच्युतस्वर्गना
पुष्पोत्तर विमानमां बिराजमान हतो. ते वखतनी
ईन्द्रसभामां केवी चर्चा थई? ते आप अहीं वांचशो; ने जाणे
आपणे पण ईन्द्रसभामां बेठा बेठा प्रभुना श्रीमुखथी ते
चर्चा सांभळता होईए–एवो आनंद थशे.)
१. ईन्द्र–देवो, आपणे घणी वखत आ ईन्द्रसभामां आत्माना अनुभवनी चर्चा करीए
छीए, अने घणीवार मध्यलोकमां तीर्थंकरभगवानना कल्याणक उजववा माटे
जईए छीए. आजे फरीने भरतक्षेत्रमां जवानो मंगलप्रसंग आव्यो छे. तेना
अत्यंत आनंददायक समाचार हुं तमने संभळावुं छुं.
१. ईन्द्राणी–कहो महाराज! शा समाचार छे?
१ ईन्द्र–सांभळो देवो! आपणा स्वर्गमां बिराजमान आ देवेन्द्र, छ मास पछी
भरतक्षेत्रना वैशालीनगरमां चोवीसमा महावीर तीर्थंकरपणे अवतरशे.
२ ईन्द्र–अहो, धन्य हो धन्य हो! आपणने तीर्थंकरदेवना कल्याणक उजववानुं महान
भाग्य प्राप्त थशे. तीर्थंकरनो आत्मा तो त्रिकाळ मंगळ छे.
२ ईन्द्राणी–वाह, एवा मंगळरूप आत्माने ओळखतां आपणने पण सम्यक्त्वादि
मंगळ भावनी प्राप्ति थाय छे.
३ ईन्द्र–अहा, अत्यारे पण एवा मंगळ आत्मा, आपणी आ सभामां साक्षात् बिराजी
रह्या छे.
३ ईन्द्राणी–हा, बराबर छे! आ होनहार महावीर तीर्थंकरनी साथे आपणे असंख्य वर्ष
सुधी रह्या, ने तेमना श्रीमुखथी आत्मानो अद्भुत महिमा सांभळीने घणा देवो
सम्यग्दर्शन पाम्या.