: २० : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
१४ ईन्द्र–ज्यारे तीर्थंकरनो अवतार थाय त्यारे आखा जगतमां आनंद फेलाय छे.
१४ ईन्द्राणी–अरे, नरकना जीवने पण साता थाय छे ने केटलाय जीवो सम्यग्दर्शन पामे छे.
१५ ईन्द्र–जगतमां ज्यारे लाखो जीवो धर्म पामवानी तैयारीवाळा होय, ने धर्मकाळ
वर्तवानो होय त्यारे तीर्थंकरनो अवतार थाय छे.
१५ ईन्द्राणी–अहो, एवो धन्य अवसर तो जीवनमां क््यारेक ज आवे छे.
१६. ईन्द्र–भरतक्षेत्रमां तो असंख्यवर्षोमां मात्र २४ वखत ज एवी धन्यपळ आवे छे
के ज्यारे तीर्थंकरनो अवतार थाय छे.
१६ ईन्द्राणी–पण विदेहक्षेत्रमां तो एटला वखतमां असंख्य तीर्थंकरो अवतरे छे.
सौधर्म–अहा, तीर्थंकरोनुं जीवन ए कोई अद्भुत जीवन छे. चैतन्यना आराधक जीवोना
जीवननी शी वात? ए तो अद्भुत होय ज ने!
शची–ए तीर्थंकरोने तो धन्य छे, ने एमना परिवारने पण धन्य छे.
सौधर्म–आपणे बधा पण तीर्थंकर भगवानना परिवारना ज छीए. चालो, आपणे सौ
महावीर तीर्थंकरना गर्भकल्याणकनो उत्सव करवा मध्यलोकमां जईए...कुबेरजी!
कुबेर–जी महाराज!
सौधर्म–तमे भरतक्षेत्रना वैशाली कुंडग्राममां जाओ, तेनी अद्भुत शोभा करो अने
सिद्धार्थ राजाना महेलमां पंदर मास सुधी रत्नोनी वर्षा करो.
कुबेर–जेवी आज्ञा महाराज! अहो, जगतना नाथ तीर्थंकर देवनी सेवा करवानुं महान
भाग्य मने मळ्युं. आ देवलोकनी समस्त विभूति वडे पण जेमना एक गुणनोय
पूरो महिमा न करी शकाय एवा भगवाननी सेवानो धन्य अवसर तो
मोक्षगामी जीवने ज मळे छे.
कुबेराणी–साचुं ज छे. तीर्थंकरनी सेवाथी अमारी आ देवीपर्याय पण धन्य बनी गई.
चालो, जल्दी मध्यलोकमां जईए ने तीर्थंकरना माता–पितानुं सन्मान करीए.
(महावीर भगवानकी जय हो.)