Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 25 of 57

background image
: २२ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
धर्म एक, एवा साधर्मीओने संसारना कोई मतभेद आडा आवता नथी; तेथी
साधर्मीने देखीने तेने अंतरमां प्रसन्नता थाय छे; तेनी साथे धर्मचर्चा, तेनुं
अनेक प्रकारे आदर–सन्मान, वात्सल्य करीने धर्मनो उत्साह वधारे छे. तेने
साधर्मी प्रत्येनो धर्मप्रेम उल्लसी जाय छे. जगतमां मोटामोटा हजारो मित्रो
मळवा सहेला छे, पण साचा साधर्मीनो संग मळवो बहु मोंघो छे.
४. सभाजन:–अहा, साधर्मी प्रेमनी आवी सरस वात आपना श्रीमुखथी सांभळीने
अमने घणी प्रसन्नता थाय छे.
५. सभाजन:–महाराज! आवो सत्य दिगंबर जैनधर्म आपणने महाभाग्ये मल्यो छे,
ने अत्यारे तो चोथोकाळ वर्ती रह्यो छे. अत्यारे तेवीसमा तीर्थंकर भगवान
पार्श्वनाथनुं शासन चाले छे. तो हवे चोवीसमा तीर्थंकरनो अवतार क्यारे थशे?
सिद्धार्थ:–अत्यारे चारे बाजुथी जे उत्तम चिह्नो प्रगटी रह्या छे ते जोतां एम लागे छे के
हवे तुरतमां ज चोवीसमा तीर्थंकरनो अवतार थशे, एटलुं ज नहि...पण, मारा
अंतरमां धर्मभावनानुं जे महान आंदोलन चाली रह्युं छे ते उपरथी एम लागे
छे के जाणे तीर्थंकर भगवान मारा आंगणे ज पधार्या होय!
६ सभाजन:–अहो महाराज! आप महा भाग्यवान छो...आप चरमशरीरी छो, ने
आपना कुळमां चरमशरीरी तीर्थंकर अवतरशे. आपणी वैशालीनगरी धन्य
थशे.
७ सभाजन:–मात्र वैशाली नहि, आपणे बधा धन्य बनशुं. नानकडा तीर्थंकरने नजरे
नीहाळशुं, ने एना दर्शनथी घणाय जीवो सम्यग्दर्शन पामीने संसारथी तरी
जशे.
८ सभाजन–अहा, एक नानकडा बाळकनी अंदर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, अवधिज्ञान
अने अतीन्द्रिय आनंद होय...ए एक आश्चर्यनी वात छे.
९ सभाजन:–ए आश्चर्यनी वात होवा छतां सत्य छे. अने थोडा वखतमां आपणे
ज्यारे नानकडा महावीरकुंवरने त्रिशलामातानी गोदमां खेलता नजरे जोईशुं
त्यारे आपणुं आश्चर्य मटी जशे, ने आत्मानी कोई अद्भुत अलौकिक ताकात
केवी छे तेनो आपणने साक्षात्कार थशे.
१० सभाजन:–महाराज, घणा जीवो मोक्षमां गया छे, ने घणा जीवो मोक्षमां जशे, ते
बधा केवी रीते जशे?