Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : २३ :
सिद्धार्थ:–सांभळो, जैनसिद्धांतनो त्रणेकाळनो नियम छे के –
भेदविज्ञानत: सिद्धा: सिद्धा ये किल केचन,
अस्येव–अभावतो बद्धा, बद्धा ये किल केचन.
भेदज्ञाननी भावना ते ज मुक्तिनो उपाय छे.
११ सभाजन:– आवुं भेदज्ञान कई रीते थाय?
सिद्धार्थ:–तमे बहु सारो प्रश्न पूछयो. भेदज्ञान माटे पहेलांं आत्मानी लगनी लागवी
जोईए, एवी लगनी लागे के आत्माना कार्य सिवाय जगतनुं बीजुं कोई कार्य
सुखरूप न लागे. ज्ञानी पासेथी चैतन्यतत्त्व सांभळीने तेनो अपूर्व महिमा
आवे के अहा, आवुं अचिंत्य गंभीर मारुं तत्त्व छे. –एम अंतरना तत्त्वनो
परम महिमा भासतां परिणति संसारथी हटीने चैतन्य सन्मुख थाय छे, ने
शांतिना ऊंडाऊंडा गंभीर समुद्रने अनुभवीने रागादिथी छूटी पडी जाय छे.
आवुं भेदज्ञान थतां जीवना अंतरमां मोक्षमार्ग खुल्ली जाय छे. माटे भेदज्ञाननी
निरंतर भावना करवी जोईए–
भावयेत् भेदविज्ञानं ईदम् अच्छिन्नधारया;
तावत् यावत् परात् च्युत्वा, ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठते.
१२ सभाजन:–देव! आवुं भेदज्ञान संसारना बधा जीवो केम नहीं पामता होय?
१३ सभाजन: – सांभळो, जगतनी स्थिति एवी छे के–
बहु लोक ज्ञानगुणे रहित आ पद नहि पामी शके;
रे ग्रहण कर तुं नियत आ, जो कर्म–मोक्षेच्छा तने.
१४ सभाजन: खरुं छे, चैतन्यतत्त्व बहु गंभीर छे. लोको तो ए पामे के न पामे,
आपणे जगतनी चिंता छोडीने, पोते पोतानुं हित थाय तेम करी लेवानुं छे.
१५ सभाजन:–बराबर छे; आ जगत तो विचित्र छे; जगतनुं जोवा रोकाईए तो
आत्मानुं चुकी जवाय तेवुं छे. तीर्थंकरो जगतनुं जोवा रोकाया नहि, तेओ तो
अंतरना चैतन्यने साधीने पोताना मार्गे मोक्षमां चाल्या गया.