सिद्धार्थ:–सांभळो, जैनसिद्धांतनो त्रणेकाळनो नियम छे के –
अस्येव–अभावतो बद्धा, बद्धा ये किल केचन.
सिद्धार्थ:–तमे बहु सारो प्रश्न पूछयो. भेदज्ञान माटे पहेलांं आत्मानी लगनी लागवी
सुखरूप न लागे. ज्ञानी पासेथी चैतन्यतत्त्व सांभळीने तेनो अपूर्व महिमा
आवे के अहा, आवुं अचिंत्य गंभीर मारुं तत्त्व छे. –एम अंतरना तत्त्वनो
परम महिमा भासतां परिणति संसारथी हटीने चैतन्य सन्मुख थाय छे, ने
शांतिना ऊंडाऊंडा गंभीर समुद्रने अनुभवीने रागादिथी छूटी पडी जाय छे.
आवुं भेदज्ञान थतां जीवना अंतरमां मोक्षमार्ग खुल्ली जाय छे. माटे भेदज्ञाननी
निरंतर भावना करवी जोईए–
१३ सभाजन: – सांभळो, जगतनी स्थिति एवी छे के–
रे ग्रहण कर तुं नियत आ, जो कर्म–मोक्षेच्छा तने.
अंतरना चैतन्यने साधीने पोताना मार्गे मोक्षमां चाल्या गया.