Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
१६ सभाजन–अहा, आजे भेदज्ञाननी सरस चर्चा थई. आजनो दिव्य प्रकाश एवो
लागे छे के जाणे कोई तीर्थंकरनुं आपणी नगरीमां आगमन थई रह्युं होय!
त्रिशलामाता:–मने पण आजनी चर्चामां तीर्थंकरनो महिमा सांभळीने बहु ज आनंद
थयो. मारुं अंतर पण कोई अनेरी प्रसन्नता अनुभवी रह्युं छे. आकाशमांथी
जाणे आनंदनो वरसाद वरसी रह्यो होय एवुं लागे छे.
(राणीओ पण तत्त्वचर्चामां आनंदथी भाग लेतां कहे छे–)
१. अहो, राजमाता! आपनो पुण्यप्रभाव कोई अजोड छे.
२. आपना आत्मिकभावोमां पण कोई अनेरूं परिवर्तन थई रह्युं छे.
३. माता, आपना सान्निध्यथी अमने पण उत्तम भावनाओ जागे छे.
४. माता, जगतमां माताओ तो अनेक छे; पण आ भरतक्षेत्रमां तीर्थंकरनी माता
तो तुं एक ज छो.
५. भगवान जेनी कुंखे आवे ते माता पण मोक्षगामी ज होय
६. अहो, स्त्रीपर्यायमां पण आत्मानी साधना थई शके छे.
७. अरे, पंचमकाळनी स्त्रीओ पण आत्मसाधना करशे, तो आ चोथा काळमां
आपणे केम न करीए!
८. ज्यारे आत्माने साधीए त्यारे धर्मकाळ छे.
९. तेवीस तीर्थंकरो तो थई गया. हवे २४ मा तीर्थंकरनो अवतार थशे.
१०. अने तीर्थंकरप्रभुना शासनमां लाखो जीवो आत्मानुं कल्याण करशे.
११. तीर्थंकरना शासनमां गणधरो पाकशे ने हजारो मुनिओ पण पाकशे.
१२. आत्माने जाणनारा लाखो श्रावको ने श्राविकाओ पण पाकशे.
१३. पंचमकाळमां पण जैनधर्मनी धारा अखंडपणे चाल्या करशे.
१४. अहो; तीर्थंकरना अवतारथी आपणुं वैशाली राज्य धन्य बनशे.
(दिव्यवाजां वागे छे...रत्नोनी वृष्टि थाय छे)
१५. अहो; आ दिव्य वाजां शेनां संभळाय छे; ने आ रत्नवृष्टि क््यांथी थाय छे?