: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : २५ :
१६ अहा, जुओ जुओ, स्वर्गमांथी कुबेर आवी रह्या छे; साथे ५६ कुमारिदेवीओ पण
छे.
(कुबेर आवीने नमस्कार करीने कहे छे–)
कुबेर: –अहो सिद्धार्थ महाराज! आप धन्य छो, अहो त्रिशलामाता! आप धन्य छो. छ
मास पछी २४ मा तीर्थंकर आपनी कुंखे अवतरशे. तेथी ईन्द्रमहाराजे मने आ
भेट लईने आपनी सेवामां मोकल्यो छे. हे जगतपिता! हे जगतमाता! तीर्थंकर
परमात्मा जेना आंगणे पधारे एना महिमानी शी वात?
कुबेराणी: –हे माता! भगवानना पधारवाथी आपनो देह तो पवित्र थयो ने आपनो
आत्मा पण सम्यक्त्वादिथी शोभी ऊठशे. अमे स्वर्गना देवो आपनुं सन्मान
करीए छीए. दिग्कुमारी देवीओ पण मातानी सेवा करवा आवी छे.
देवीओ द्वारा मातानी स्तुति–
धन्य धन्य छो हे माता! तुं जिनेश्वरकी माता,
नंदन तारा जयवंत छे त्रणलोकमां.
जे पुत्र तारो थाशे, ते मुनि थई विचरशे,
केवळ पामी, ए भव्यजीवोने तारशे.
तारा उरमां रत्न बिराजे, श्री तीर्थंकरप्रभु राजे,
मोक्षगामी! माताजी जयवंत लोकमां.
तारो पुत्र मोटो थाशे, ए परमात्मा बनी जाशे,
जेने देखी, समकित जीवो पामशे.