: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : २७ :
(ईन्द्र ६)–खरेखर, वीतरागभाव ते ज तीर्थंकरोनो मार्ग छे. ने वीतरागभाव वडे ज
तीर्थंकरदेव ओळखाय छे.
(ईन्द्राणी ६)–अहा, धन्य छे ते जीवन! के जेमां वीतरागरसनो स्वाद चाखीए.
(ईन्द्र ७)–महावीर तीर्थंकर अत्यारे त्रिशला माताना पेटमां बेठाबेठा पण चैतन्य–
रसनो स्वाद लई ज रह्या छे.
(ईन्द्राणी ७)–अहो, ए तो सम्यग्दर्शननो प्रताप छे. सम्यग्द्रष्टि जीवने चैतन्यस्वादनुं
वेदन सदाय होय छे.
(ईन्द्र ८)–अहो! राग वखतेय धर्मीजीवने चैतन्यस्वादनुं वेदन वर्ततुं होय–ए
आश्चर्यकारी वात तो ज्ञानी ज समजे छे.
(ईन्द्राणी ८)–ज्ञानीने चैतन्यनी शांति अने रागनी आकुळता बंने एक साथे होय छे,
–पण ज्ञानी तेने एकबीजामां जराय भेळवता नथी. बंने धारा जुदी ज रहे छे;
तेनुं रहस्य ज्ञानी ज समजे छे.
(ईन्द्र ९)–महावीरतीर्थंकरनो आत्मा अत्यारे एवी मिश्रधारारूपे परिणमी रह्यो छे.
तेमांथी ज्ञानधारा अने रागधारा बंनेने जुदी ओळखवी ते ज भगवाननी
साची ओळखाण छे.
(ईन्द्राणी ९)–तीर्थंकरनी आवी ओळखाणथी तेमना जे पंचकल्याणक महोत्सव उजवाय
छे ते अद्भुत आनंदकारी होय छे.
(ईन्द्र १०)–अहो, तीर्थंकर! जेमनुं नाम सांभळतां पण हर्ष थाय छे, तेमना साक्षात्
दर्शननी शी वात!
(ईन्द्राणी १०)–आजे महावीर तीर्थंकर त्रिशलामातानी कुंखे पधार्या छे; आपणे तेमना
कल्याणक उजवीने धन्य बनशुं.
ते गाम–पूरने धन्य छे ते मात–कुळ ज वंद्य छे.
(ईन्द्र १२)–अहो, जिनेन्द्र भगवाननो अवतार थतां जगतमां अजवाळा थाय