: २८ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
छे, ने नारकीना जीवो पण सुख पामे छे. देवो प्रभुनी सेवा करवा माटे मध्यलोकमां जाय छे.
(ईन्द्राणी १२)–मनुष्यलोकमां कोईवार एकसाथे एकसोसींतेर तीर्थंकरो अरिहंतपदे
विचरता होय छे.
(ईन्द्र १३)–विदेहक्षेत्रमां अत्यारे वीस तीर्थंकरभगवंतो विचरे छे; भरतक्षेत्रमां
अत्यारे कोई तीर्थंकर नथी, पण सवा नव मास पछी चोवीसमा तीर्थंकरनो
अवतार थशे.
(ईन्द्राणी १३)–तीर्थंकरनुं द्रव्य त्रिकाळ मंगळ छे. शुद्धनयथी जोनार पोताना आत्माने
पण मंगळरूप देखे छे.
(ईन्द्र १४)–भरतक्षेत्रमां अत्यारे ‘भावतीर्थंकर’ नथी पण ‘द्रव्यतीर्थंकर’ तो बिराजी
रह्या छे. एवा द्रव्यतीर्थंकर अत्यारे त्रिशलामाताना पेटमां बिराजी रह्या छे.
(ईन्द्राणी १४)–अहो, द्रव्यतीर्थंकरनो पण आटलो महिमा! तो भावतीर्थंकरना
महिमानी शी वात!
(ईन्द्र १५)–भावतीर्थंकरने ओळखतां तो सम्यग्दर्शन थाय छे. कह्युं छे के–
जे जाणतो अर्हंतने गुण–द्रव्य ने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने तसु मोह पामे लय खरे.
(ईन्द्राणी १५)–सवा नवमास पछी महावीर तीर्थंकरनो अवतार थशे अने तेमनुं
शासन भरतक्षेत्रमां एकवीस हजार वर्ष सुधी चालशे.
(ईन्द्र १६)–अहो, आजनी घडी धन्य छे के चोवीसमां तीर्थंकरना गर्भकल्याणकनो
अवसर आव्यो छे.
(ईन्द्राणी १६)–भगवानना कल्याणक देखीने आत्मानुं कल्याण थशे; एथी तो तेने
कल्याणक कहेवाय छे.
(कुबेर)–भगवाननो जीव आजे ज अहींथी देवपर्याय छोडीने तीर्थंकरपर्यायमां
अवतर्यो छे. चालो, सौ आनंदथी तेमनो उत्सव करवा जईए.
(कुबेराणी)–हा देव! अमे देवीओ पण आपनी साथे ज आवशुं ने त्रिशलामातानी
सेवा करशुं.
हा, सौ खुशीथी चालो.