Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : २९ :
ईन्द्रसभामां तीर्थंकरनो जन्मोत्सव
सोनगढमां परमागम–मंदिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा–
महोत्सवमां महावीरप्रभुनो जन्मकल्याणक फागण सुद ९
ना रोज थयो हतो. ते आनंदप्रसंगे ईन्द्रसभामां केवी चर्चा
थई हती ते आप अहीं वांचशो.
मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभुभृताम्
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये.
ईन्द्र–१:–अहो देवो! जैनधर्म पामीने आपणे धन्य बन्या. आ एक ईन्द्रपर्यायमां ज
आपणे असंख्य तीर्थंकरभगवंतोना कल्याणक उजव्या. अने तीर्थंकरदेवना
शासनना प्रतापे अपूर्व कल्याणकारी सम्यग्दर्शन पामीने आ भवचक्रथी
आपणे छूट्या.
मिथ्यात्व–आदिक भावने चिरकाळ भाव्या छे जीवे,
सम्यक्त्व–आदिक भाव रे! भाव्या नथी पूर्व जीवे.
(नियमसार गाथा ८९)
अत्यारे एवा अपूर्व सम्यक्त्वादिनी भावना भावीने भवचक्रना नाशनो आ
अवसर छे. माटे जैन शासन कहे छे के हे जीवो! तमे आत्मानो प्रेम करो.
आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने,
आनाथी बन तुं तृप्त तुजने सुख अहो! उत्तम थशे.
(समयसार २०६)
देवो! जिनशासनमां भगवाने राग–द्वेष–मोह वगरना शुद्धपरिणामने धर्म
कह्यो छे; ने व्रत–पूजादिना शुभरागने पुण्य कह्युं छे. माटे तमे शुद्ध भावरूप
धर्मने साधीने देवपर्यायने सफळ करो.