Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
१ ईन्द्राणी:–हा देव! आपनी वात सत्य छे. अमारुं आयुष्य ओछुं छे तोपण केटलाय
तीर्थंकरभगवंतोने गोदमां तेडवानुं महान भाग्य अमने मळे छे. बालतीर्थंकरना
स्पर्शथी अमारी स्त्रीपर्याय पण धन्य बनी, ने अमने आत्माना शुद्धभावनी
प्रेरणा जागी छे.
२ ईन्द्राणी:–हे महाराज! आपणे भगवानना कल्याणक उजवीए छीए; तो कल्याणक
एटले शुं?
२ ईन्द्र:–हे देवी! आत्माना कल्याणमां जे निमित्त थाय तेनुं नाम कल्याणक छे. एटले
सम्यक् रत्नत्रय ते परमार्थ कल्याणक छे; अने तीर्थंकरभगवानना पंचकल्याणक
अनेक जीवोना कल्याणनुं निमित्त थाय छे.
३. हे स्वामी! भगवानना कल्याणक आपणा कल्याणनुं निमित्त कई रीते थाय?
३. हे देवी! तीर्थंकरना कल्याणकनां अद्भुत द्रश्यो देखतां कोई भव्य जीवोने
चैतन्यना अपार महिमानी स्फूरणा जागे छे, ने तेनुं कल्याण थाय छे.
४. बराबर छे देव! तेवीसमा तीर्थंकरना मोक्षकल्याणकने देखीने ज मने देह अने
आत्मानी भिन्नतानुं लक्ष थयुं अने अतीन्द्रिय आनंदनी प्रतीति थई.
४. अहा, आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनी प्रतीत थतां जीवनी परिणति आखा
संसारथी पाछी हटी जाय छे, ने ते पोताना अंतरमां सुखसमुद्रने देखे छे.
५. अहा, ए सुख खरेखर अद्भुत छे! शरीर अने विषयो वगरनुं होवा छतां
आत्मानुं ए सुख जगतमां सौथी ऊंचुं छे.
५. अरे, वीतरागी संतो पण ए सुखने चाहे छे–
सुखधाम अनंत सुसंत चही,
दिनरात रहे तद् ध्यान महीं,
प्रशांत अनंत सुधामय जे,
प्रणमुं पद ते वर ते जय ते
मंगल घंटनाद– वाजां – प्रकाश
सौधर्म ईन्द्र–अरे....अरे! मारुं आ ईन्द्रासन आज एकाएक केम डोली रह्युं छे? मारा
सिंहासनने कंपावनार आ जगतमां कोण छे? अरे, आ मधुर घंटनाद एनी