: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : ३१ :
मेळे केम वागी रह्या छे? आ दैवी वाजां केम वागी रह्या छे? चारेकोर आ
दिव्यप्रकाशनो झगझगाट केम प्रसरी रह्यो छे? त्रणलोकनुं वातावरण आटलुं
बधुं हर्षमय केम बनी रह्युं छे? जरूर कोईक आश्चर्यकारी घटना बनी छे.
(अवधिज्ञानथी जाणीने–पछी–ऊभा थईने बोले छे.)
अहो, आनंद.....आनंद....आनंद!
देवो सांभळो! मध्यलोकमां भरतक्षेत्रनी वैशालीनगरीमां त्रिशलादेवी मातानी
कुंखे चोवीसमा तीर्थंकरनो अवतार थई चुक्यो छे.
(सौधर्मईन्द्र सहित बधा देव–देवीओ नीचे ऊतरी नमस्कार करे छे.)
(बधा देवो:–धन्य हो...धन्य हो...धन्य हो! बोलिये महावीर भगवानकी जय हो.
६. देवी:–अहो धन्य अवतार! मध्यलोकमां तीर्थंकरनो अवतार थतां ऊर्ध्वलोकनुं
आपणुं आ स्वर्ग पण उज्जवळ बन्युं.
६. देव:–अरे, नरकना जीवोने पण बेघडी साता थई हशे, ने तीर्थंकरनो महिमा जाणीने
घणाय जीवो सम्यक्त्व पामी गया हशे.
७. देवी:–अहा, जे आत्मानो पुण्यवैभव पण आवो अद्भुत, तेमना आत्मवैभवनी तो
शी वात?
७. देव:–अहा, एमना आत्मवैभवनो महिमा समजतां आपणने आपणा आत्मानो
स्वभाव पण समजाई जाय छे.
८. देवी:–ए ज आपणा जैनशासननी खूबी छे के कोई पण तत्त्वनो साचो निर्णय
करतां आत्मा स्वसन्मुख थाय छे, ने वीतरागता थाय छे.
८. देव:–तेथी ज सर्वे शास्त्रोनुं तात्पर्य वीतरागता कह्युं छे. वीतरागतानो उपदेश ते ज
ईष्ट उपदेश छे.
९. देवी:–अरे, अरिहंतदेव प्रत्येनो शुभराग पण ज्यां संसारनुं ज कारण छे त्यां बीजा
रागनी तो शी वात ? खरेखर वीतरागतामां ज महान आनंद छे.
९ देव:–परमागमनुं पण ए ज फरमान छे–
तेथी न करवो राग जरीये क््यांय पण मोक्षेच्छुए,
वीतरागी थईने ए रीते ते भव्य भवसागर तरे.