: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : ३३ :
सौधर्मईन्द्र:–अहो, तीर्थंकरप्रभुना जन्मनो महोत्सव स्वर्गमां आपणे आनंदथी उजवीए
छीए. देवीओ, तमे आनंद–मंगळनां गीत गाओ. कुबेर! तमे देवोनी सेना
तैयार करो; ऐरावत हाथी तैयार करो; आपणे भरतक्षेत्रमां चोवीसमा
तीर्थंकरनो जन्माभिषेक करवा जईए.
कुबेर:–जेवी आज्ञा महाराज! मारा धन भाग्य छे के तीर्थंकर भगवाननी सेवा करवानुं
महा भाग्य मने वारंवार मळे छे.
कुबेराणी:–अहो, भगवाननो जन्माभिषेक जोतां, आत्मामां जाणे आनंदनो अभिषेक
करता होईए एवो आनंद थाय छे.
कुबेर:–महाराज! ऐरावत हाथी तैयार छे. चालो, आपणे शीघ्र मध्यलोकमां जईए, ने
प्रभुना दर्शन करीने पावन थईए.
सौधर्म:–हा चालो, बधा देवो चालो.
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पू. गुरुदेव श्री कानजीस्वामी सोनगढथी चैत्र सुद एकमे राजकोट पधार्या हता,
ने चैत्र सुद पुनम सुधी त्यां बिराज्या हता. चैत्र सुद पुनमे राजकोटथी मुंबई पधार्या
छे, ने हाल मुंबईमां बिराजी रह्या छे. वैशाख सुद बीजे ८५ मी जन्मजयंति मुंबईमां
ऊजवाशे. मुंबईनुं तारनुं सरनामुं “DIGJAINMUM” Bombay छे. जन्मजयंति
बाद बीजे दिवसे (वैशाख सुद त्रीज ता. २५ ना रोज) गुरुदेव मुंबईथी भावनगर
थईने सोनगढ पधारशे. गढडाशहेरमां श्री जिनबिंबवेदीप्रतिष्ठानुं मूरत वैशाख वद
बीजनुं छे.
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उपयोग–लक्षण जीव छे,
ने ए ज साचुं जीवन छे;
ते जीवजो...जीवडावजो.
प्रभु वीरनो उपदेश छे.
चेतनजीवन वीरपंथमां,
नहि देह–जीवन सत्य छे.
चेतन रहे निज भावमां,
बस, ए ज साचुं जीवन छे.