Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
आपनुं रूप तो अतीन्द्रियआंखवडे ज देखाय तेवुं छे. प्रभु ऐरावत हाथी उपर
बिराजमान थया, ने प्रभुनी सवारी लईने ईन्द्रो धामधूमथी मेरु तरफ चाल्या. प्रभुनी
सवारी नीरखवा एटली भीड उमटी पडी के सोनगढ गाम सांकडुं पडतुं हतुं. सोनगढने
माटे, सौराष्ट्रने माटे अने जैनसमाजने माटे आ भव्य ऐतिहासिक महोत्सव हतो.
भाग्यशाळी छे एना जोनारा पण.
प्रभुना जन्मकल्याणकनी आ भव्य सवारी जोवा पू. गुरुदेव पण पधार्या अने
नगरना चोक वच्चेथी पसार थती प्रभुसवारी भक्तिपूर्वक नीहाळी; सवारी पसार थतां
पोणी कलाक थई. अनेक भजनमंडळी, बेन्ड वाजां, पांच परमागम सहित पांच हाथी,
अजमेरनो रथ तथा ऐरावत, सोनगढनो रथ, तथा हाथी उपर ईन्द्रनी गोदमां
बिराजमान नानकडा महावीर तीर्थंकरनुं द्रश्य देखीने आनंद थतो हतो. वीस–पचीस
हजार माणसोनी भीड अने हर्षभर्यो कोलाहल उत्सवनी प्रसिद्धि करता हता. सोनगढ
गामे आटली भीड कदी जोई नथी. मानस्तंभना उत्सव वखते छहजार महेमानो
आव्या हता, आ परमागममंदिरना उत्सव वखते वीसहजार उपरांत महेमानो आव्या
हता; सारी नगरी प्रभुना कल्याणक उत्सवथी छवाई गई हती, घरेघरे तोरण बंधाया
हता, मंगलसूत्रो लखाया हता, ने हजारो मंगल दीवडाथी मकानो अने मंदिरो झगमगी
रह्या हता. वाह रे वाह तीर्थंकर! तारी स्थापनानो पण आवो महिमा, तो साक्षात्
जन्मकल्याणकना प्रभावनी तो शी वात! आवो प्रभावशाळी उत्सव देखीने मु. श्री
रामजीभाई गदगदभावे गुरुदेव प्रत्ये प्रमोद अने उपकारनी लागणी व्यक्त करता हता.
तथा गुरुदेव पण प्रसन्नचित्त हता.
जन्मोत्सव देखीने जनतामां एटलो बधो आनंदनो कोलाहल थवा लाग्यो के
प्रभुनो जन्मोत्सव देखीने हरखथी जीवो पागल थई जशे के शुं!–एम थतुं हतुं. अहा,
एककोर भगवाननी अलिप्त चेतना, अने एककोर आ हरखनो हीलोळो,–जैन
शासनमां बंनेनो केवो मजानो आश्चर्यकारी सुमेळ छे! अहो जिनेन्द्र! तारा शासननी
अद्भुतताने ज्ञानी ज जाणे छे. प्रभो! चारेकोर माईकमां तारी भक्तिथी दुनिया गाजी
रही छे त्यारे तुं तो तारी चेतनानी शांतिमां मस्त थईने बेठो छे! वाह रे वाह!
वीतरागमार्गना भगवान तो आवा ज शोभेने!
वाह! जेना जन्मे हर्षनो आटलो खळभळाट! ते भगवान केवा? हजी
परमात्मपद पाम्या पहेलांं जे आत्मानो आटलो प्रभाव! तेना परमात्मपदना
महिमानी तो