: ४४ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
त्रिशलामाता अने देवीओनी चर्चा
त्रिशलामाता अने पारणे झुलता वीरकुंवर
वच्चेनी मीठी वातुं आपणे गतांकमां वांची. हवे देवीओ
साथे माताजीनी मधुरी चर्चा पण वांचीए.
एक देवी पूछे छे :–हे माता! अनुभूतिस्वरूप थयेलो आत्मा तमारा अंतरमां बिराजे
छे, तो एवी अनुभूति केम थाय! ते समजावो.
माता जवाब आपे छे:–हे देवी! अनुभूतिनो महिमा घणो गंभीर छे. आत्मा पोते
ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप छे. ते ज्ञाननी अनुभूतिमां रागनी अनुभूति नथी;–
आवुं भेदज्ञान थाय त्यारे अपूर्व अनुभूति प्रगटे छे.
बीजी देवी पूछे छे के:–हे माता! आत्मानी अनुभूति थतां शुं थाय!
माता कहे छे:–सांभळ, देवी! अनुभूति थतां आखो आत्मा पोते पोतामां ठरी जाय छे.
एमां अनंतगुणना चैतन्यरसनुं एवुं गंभीर वेदन थाय छे के जेना महान
आनंदने आत्मा ज जाणे छे. ए वेदन वाणीमां आवतुं नथी.
त्रीजी देवी पूछे छे:–माता! वाणीमां आव्या वगर ए वेदननी खबर केम पडे!
माता उत्तर आपे छे:–हे देवी! पोते पोताना स्वसंवेदनथी आत्माने तेनी खबर पडे छे.
जेम आ थांभलो नजरे देखाय छे, तेम अनुभूतिमां आत्मा तेनाथी पण स्पष्ट
जणाय छे.
चोथी देवी पूछे छे:–हे माता! आंख वडे थांभलो जणाय तेनां करतांय आत्माना ज्ञानने
वधु स्पष्ट केम कह्युं!
माता जवाब आवे छे:–हे देवी! थांभलानुं ज्ञान तो ईन्द्रियज्ञान छे, ते परोक्ष छे, ने