Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : ४५ :
आत्माने जाणनारुं ज्ञान तो अतीन्द्रिय छे अने प्रत्यक्ष छे, माटे ते वधारे स्पष्ट
छे.
पांचमी देवी पूछे छे के: – अनुभूति वखते तो मति–श्रुतज्ञान छे छतां तेने प्रत्यक्ष अने
अतीन्द्रिय केम कह्या!
माताजी जवाब आपे छे:–केमके अनुभूति वखते उपयोग आत्मामां एवो लीन थयो छे
के तेमां ईन्द्रियनुं के मननुं अवलंबन छूटी गयुं छे, तेथी ते वखते प्रत्यक्षपणुं छे.
अहा, ए वखतना अद्भुत निर्विकल्प आनंदनी शी वात!
छठ्ठी देवी पूछे छे के:–हे माता! तमे अनुभूतिनी अद्भुत वात समजावी. आजे तो जाणे
तमारा अंतरमांथी कोई अलौकिक चैतन्यरस झरी रह्यो छे!
माता कहे छे:–देवी! अंतरमां बिराजमान तीर्थंकरना आत्मानो ए प्रताप छे. प्रभु
पधार्या त्यारथी मारा आत्मप्रदेशोमां अतीन्द्रिय आनंदरस छवाई गयो छे.
सातमी देवी कहे छे के:–अहा, माता! अमने तो लागे छे के पंदर मास आपनी सेवा
करतां–करतां अमने पण अनुभूतिनो महान लाभ थशे. आपना पुत्रने देखीने
अने गोदमां लईने अमे धन्य बनशुं.
माता कहे छे:–हा देवीओ! जगतना जीवोने अनुभूतिनो मार्ग बताववा माटे ज मारा
पुत्रनो अवतार छे. तमे पण महाभाग्यशाळी छो के तीर्थंकरनी सेवा करवानो
अवसर प्राप्त थयो छे.
आठमी देवी पूछे छे:–हे मा! छ– छ मासथी अहीं राजमहेलमां करोडो रत्नो वरसी रह्या
छे, रस्तामां ए रत्नोनां ढगला पड्या छे,–छतां कोई तेने लेतुं केम नथी!
माता कहे छे:–देवी! ए रत्नो तो जड छे. मारो पुत्र जन्मीने जगतने सम्यग्दर्शन ज्ञान–
चारित्रनां चैतन्यरत्नो आपवानो छे...तो ए अलौकिक चैतन्यरत्नो छोडीने आ
जड–रत्नो कोण ल्ये! जगतना जीवो तो मारा पुत्र पासेथी सम्यग्दर्शनादि रत्नो
ग्रहण करशे.
बधी देवीओ आनंदथी कहे छे:–
“धन्य रत्नकूंखधारिणी माता! तमारो जय हो....तमारा पुत्रनो जय हो.”
जय महावीर