Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : वैशाख : २५००
वळेला सम्यक्मति–श्रुतज्ञानवडे तेनो अगाध महिमा साक्षात् अनुभवमां आवे
छे बीजी कोई रीते चैतन्यरत्न हाथ आवतुं नथी.
२५. जो तारे खरेखर सुखी थवुं होय, तारे सिद्धपदना मार्गे आववुं होय तो
पहेलामां पहेलांं स्वसन्मुख थईने ज्ञानवडे आत्माने जाण–एम वीतराग
संतोनो उपदेश छे.
२६. पहेलांं विकल्प अने रागवडे मार्ग पमाशे एम नथी. स्वसन्मुख थयेल ज्ञान
पोते आनंदमां तन्मय थईने आनंदने अनुभवे छे. आनंद कोईकने थाय छे ने
ज्ञान बीजा कोईक ने थाय छे–एम नथी अभेद अनुभूतिमां ज्ञान–आनंद वगेरे
अनंतभावोनुं एकसाथे वेदन छे.
२७. आ मोक्षना अर्थी जीवनी वात छे. भाई, आ जीवनमां मारे मारुं कल्याण करवुं
ज छे–एवी ऊंडी आत्मजिज्ञासापूर्वक चैतन्यनो महिमा घूंटतां–घूटतां तारा
निर्णयमां एम आवे के अहो! हुं ज स्वयं परिपूर्ण ज्ञान आनंदस्वरूप छुं; आवा
निर्णयना जोरे अंतर्मुख थतां प्रत्यक्ष स्वसंवेदन वडे आत्मअनुभव थाय छे, ते
सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन थतां आत्मा परमात्माना पंथे चडयो....महावीरना
मार्गे चाल्यो.
२८. आत्माने साधतां साधतां, वच्चे साधकभूमिकामां रागवडे तीर्थंकर नामकर्म
बंधायुं, पछी रागनो नाश करीने केवळज्ञान थतां ते तीर्थंकरप्रकृति उदयमां
आवी, त्यारे दिव्यध्वनिमां भगवाने वीतरागतानो उपदेश आप्यो, आत्माने
केम साधवो ते बताव्युं. ते वात अहीं समयसारनी १७–१८ गाथामां
आचार्यदेवे बतावी छे.
२९. प्रथम तो आत्माने चैतन्यस्वरूप जाणीने तेनी श्रद्धा करवी, के जे आ
चैतन्यभावे अनुभवाय छे ते हुं ज छुं; चैतन्यथी भिन्न बीजा भावो ते हुं नथी.
–आवुं भेदज्ञान करीने निःशंक श्रद्धा करे ते ज जीव, चैतन्यस्वरूपमां निःशंकपणे
ठरीने तेने साधी शके छे.
३०. हे मुमुक्षु! पहेलामां पहेलुं तारुं काम ए छे के चैतन्यराजाने ओळख! ओळखीने
तेनी सेवा करतां (–एटले श्रद्धा–तथा एकाग्रता करतां) तारो आनंदमय
आत्मा तने अनुभवमां आवशे.