Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख: २५०० आत्मधर्म : ७ :
३१. रागनी रमत छोडीने तारे आनंदनी रमत रमवी होय तो तुं आत्माने
ज्ञानस्वरूपे जाणीने अनुभवमां ले. बापु! तारा आनंदना मारगडा रागथी जुदा
छे; जगतथी जुदा तारा आनंदना मारग छे. अनंत आनंदनो समुद्र अंदर छे
तेमांथी आनंदनो धोध बहार (अनुभवमां) आवे. एनुं नाम सम्यग्दर्शन अने
धर्म छे.
३२. समयसार एटले आत्मानी वार्ता! आत्मानुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं आ समयसार
बतावे छे. जेम ‘साकर’ शब्द साकर–वस्तुने बतावे छे, पण साकर वस्तु तो ते
वस्तुमां छे, ‘साकर’ एवा शब्दमां ते वस्तु नथी; तेम आत्मवस्तुने बतावनार
आ समयसार छे; पण आत्मवस्तु तो पोताना ज्ञानस्वरूपमां छे, ‘समयसार’
ना शब्दोमां ते वस्तु नथी, समयसार तो तेनुं वाचक छे वाच्य वस्तु आत्मा तो
अंदर पोताना अंतरमां छे.
३३. आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानी सेवा केम करवी, आराधना केम करवी, तेनो आ
उपदेश छे. ज्ञानरूप थईने ज्ञानस्वरूप आत्मानी सेवा थाय छे, रागवडे
ज्ञानस्वरूप आत्मानी उपासना–सेवा थती नथी.–आम श्रीगुरुए कह्युं.
३४. हवे जिज्ञासु शिष्य एटलुं तो समज्यो के श्रीगुरु मने देह अने रागथी पार
एवा ज्ञाननी सेवा करवानुं कहे छे; रागनी के परनी सेवा वडे कल्याण थवानुं
श्रीगुरु कहेता नथी.
३५. आटलुं लक्षमां लईने, हवे ज्ञाननी सेवानो उत्सुक थयेलो शिष्य पूछे छे के
प्रभो! आपे ज्ञाननी सेवा करवानुं कह्युं, परंतु आत्मा तो सदाय ज्ञानस्वरूप छे
ज! पोते ज ज्ञानस्वरूप छे, पछी ज्ञाननी सेवा करवानुं क््यां रह्युं? नित्य
ज्ञानस्वरूपने ते सेवे ज छे; ज्ञानथी आत्मा जुदो तो नथी.–तो पछी ज्ञाननी
सेवानो उपदेश शा माटे कहो छो?
३६. जिज्ञासु शिष्यना आवा प्रश्नना उत्तरमां आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! जोके
आत्मा नित्य ज्ञानस्वरूप छे,–पण तेना ज्ञानवगर ते ज्ञानने एकक्षण पण
सेवतो नथी, रागादिने ज पोतापणे सेवे छे. ज्ञाननी सेवा तो त्यारे थाय के
ज्यारे ज्ञानस्वरूप आत्माने रागथी भिन्न जाणीने पोते तेवी ज्ञानपर्यायरूपे
परिणमे. श्रीगुरुना उपदेशपूर्वक भेदज्ञान करीने जीव ज्ञानने सेवे छे. अथवा