Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १०: आत्मधर्म : वैशाख: २५००
अहिंसा धर्म आखा जगतने प्रिय छे; पण तेनुं साचुं स्वरूप समजनारा तो
जगतमां कोई विरला ज छे. अने ते अहिंसानुं साचुं स्वरूप समज्या वगर तेनुं पालन
थई शके नहीं; माटे अहिंसा–प्रेमीए तेनुं साचुं स्वरूप समजवुं जोईए. भगवान
महावीरना शासनमां परम अहिंसा धर्मनुं सत्य स्वरूप समजाव्युं छे; ते अहीं कहीए
छीए:–
प्रथम तो अहिंसाधर्म एटले शुं?
* महावीरप्रभुना शासनमां परम अहिंसा–धर्म तेनो कह्यो छे के जेना सेवनथी
जरूर मोक्ष थाय. अने आत्मानो स्वभाव हणाय नहीं.
* तथा हिंसा तेने कहे छे के जेनाथी आत्मानो स्वभाव हणाय अने संसारमां भव
करवो पडे. (पछी ते भव सुगतिनो हो के दुर्गतिनो हो.) आ रीते अहिंसा ते
मोक्षनुं कारण छे, अने हिंसा ते संसारनुं कारण छे.
अहिंसा=मोक्षकारण हिंसा=संसारकारण
१. शुभभावजनित अर्थात् प्रशस्तकषायरूप हिंसा.
२. अशुभभावजनित अर्थात् अप्रशस्तकषायरूप हिंसा.
आ रीते जीवना अकषाय के सकषाय (वीतराग के रागादि) परिणाम साथे
अहिंसा के हिंसानो संबंध छे. पण परजीवना जीवन के मरणनी साथे आ जीवनी
अहिंसा के