: १२: आत्मधर्म : वैशाख: २५००
लूटाराओने मारीने मुनिनी रक्षा करी. लूटाराओ न मुनिने मारी शक््या, के न राजाने
मारी शक््या.
हवे आपणे अहीं बे वात विचारवानी छे–
१. राजाद्वारा तो चालीस लूटाराओ हणाया.
२. लूटाराओ वडे एक पण माणस हणायो नहि.
–तो हवे ते बेमांथी वधारे हिंसक तमे कोने मानशो?
राजाने वधु हिंसक कहेशो? के लूटाराओने?
चोक्कसपणे तमे लूटाराओने ज वधु हिंसक कहेशो; ने राजाने हिंसक नहीं कहो,
पण तेना कार्यनी प्रशंसा करशो.
१. ४० माणसो मार्या गया छतां ते राजाने ओछी हिंसा केम गणी?
२. अने कोई माणस न मरवा छतां ते लूटाराओने वधु हिंसा केम गणी?
३. मुनिराज तो बंने प्रत्ये तटस्थ, राग–द्वेष वगरना छे तेथी तेओ वीतरागी–
अहिंसक छे.
विचार करतां उपरना प्रश्नोनो खुलासो नीचे मुजब आवशे.
“वधु जीव मरे माटे वधु हिंसा, ने ओछा जीव मरे त्यां ओछी हिंसा”–एवो
नियम नथी. जो एम होत तो राजा ज वधारे हिंसक ठरत. पण एम नथी. त्यारे केम
छे?
वधु कषाय त्यां वधु हिंसा; ओछो कषाय त्यां ओछी हिंसा;
ने अकषायरूप वीतरागभाव त्यां अहिंसा–एम सिद्धांत छे.
* लूटाराओए मुनिने मारवाना भावनो घणो कषाय कर्यो तेथी तेने वधु हिंसा
लागी.
* राजाए ओछो कषाय कर्यो माटे तेने ओछी हिंसा लागी. जोके तेने मुनिने
बचाववानो शुभभाव हतो, परंतु तेणे जेटलो कषाय कर्यो तेटली तो हिंसा ज
थई, केमके कषाय पोते ज हिंसा छे.
* जेमणे राग–द्वेष न कर्यो एवा मुनिराज परम–अहिंसक रह्या; केमके
वीतरागभाव ते ज अहिंसा छे; ने रागादि ते हिंसा छे.