: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : १५ :
समयसारनी आ गाथामां श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–परजीवोनुं जीवन के मरण
तो तेमना कर्मना उदयअनुसार थाओ के न थाओ, पण तेमने मारवानो के जीवाडवानो
जे अध्यवसाय छे ते ज निश्चयथी जीवने बंधनुं कारण थाय छे.
हिंसा–अहिंसानुं आवुं सूक्ष्मस्वरूप मात्र जैनशासनमां ज छे,–केमके जीवना
साचा चैतन्यप्राण, अने रागादिनुं भिन्नपणुं जैनशासनमां ज बताव्युं छे, अन्य
मिथ्यामती जीवो हिंसा–अहिंसानुं साचुं स्वरूप ओळखी शकता नथी, केमके जीवना
चैतन्यप्राणनी अने रागनी भिन्नताने तेओ जाणता नथी.
आ महत्त्वनो विषय वधु स्पष्ट समजवा माटे आपणे एक बीजो
दाखलो पांडवोनो लईए–
युधिष्ठिर–भीम–अर्जुन तथा नकुल–सहदेव ए पांच पांडवोए ज्यारे दग्ध
थयेली श्रीकृष्णनी द्वारकानगरीने देखी त्यारे संसारनी आवी क्षणभंगुरता देखीने तेमनुं
चित्त उदास थयुं अने नेमप्रभुना समवसरणमां आव्या; प्रभुना श्रीमुखथी धर्मोपदेश
सांभळीने तेओ संसारथी विरक्त थया अने मुनिदशा प्रगट करी आत्मध्यानपूर्वक
देशोदेश विचरता–विचरता तेओ सोनगढनी नजीक आवेला शत्रुंजयगिरि–सिद्धक्षेत्र पर
पधार्या; अनेक भक्तजनोए अत्यंत हर्षपूर्वक पांडव–मुनिभगवंतोनां दर्शन कर्या. पण
दुर्योधनना भाणेजना मनमां पांडवोने देखी एवो दुष्ट विचार आव्यो के आ पांडवोए
मारा मामानो नाश कर्यो छे माटे अत्यारे हुं तेनुं वेर लउं; केमके अत्यारे मुनिदशामां
तेओ कांई प्रतिकार नहीं करे.–आवा दुष्ट विचारपूर्वक तेणे लोखंडना धखधखता
दागीना पांडवोना शरीरमां पहेराव्या, ने ए रीते तेमने जीवता बाळी नांखवानो घोर
उपसर्ग कर्यो. माथा पर धगधगता लोढाना मुगट पहेराव्या तेथी माथुं सळगवा लाग्युं;
हाथ–पगना दागीनाथी हाथ–पग सळगवा मांडया. ते वखते–
१. युधिष्ठिर–भीम–अर्जुन तो चिदानंदतत्त्वनी शांत अनुभूतिमां एवा लीन थई
गया के उपसर्ग उपर लक्ष पण न गयुं. अग्निना भडका वच्चे पण चैतन्यना
शांतरसमां तेओ एवा ठरी गया के ते ज वखते क्षपकश्रेणी मांडी, संपूर्ण
वीतराग थई, केवळज्ञान पाम्या, अने तत्क्षण मोक्ष पाम्या. तेमने रागनी
उत्पत्ति थई ज नहि, तेथी तेओ परम अहिंसक रह्या; तेमनो चैतन्यभाव जराय
हणायो नहि.
२. बीजी तरफ नकुल अने सहदेव ए बे भाईओए जो के शांतिथी उपसर्ग सहन
कर्यो, दुश्मन उपर क्रोध न कर्यो; पण तेमने एटली वृत्ति ऊठी के आ उपसर्गमां