Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : १५ :
समयसारनी आ गाथामां श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–परजीवोनुं जीवन के मरण
तो तेमना कर्मना उदयअनुसार थाओ के न थाओ, पण तेमने मारवानो के जीवाडवानो
जे अध्यवसाय छे ते ज निश्चयथी जीवने बंधनुं कारण थाय छे.
हिंसा–अहिंसानुं आवुं सूक्ष्मस्वरूप मात्र जैनशासनमां ज छे,–केमके जीवना
साचा चैतन्यप्राण, अने रागादिनुं भिन्नपणुं जैनशासनमां ज बताव्युं छे, अन्य
मिथ्यामती जीवो हिंसा–अहिंसानुं साचुं स्वरूप ओळखी शकता नथी, केमके जीवना
चैतन्यप्राणनी अने रागनी भिन्नताने तेओ जाणता नथी.
महत्त्वनो विषय वधु स्पष्ट समजवा माटे आपणे एक बीजो
दाखलो पांडवोनो लईए–
युधिष्ठिर–भीम–अर्जुन तथा नकुल–सहदेव ए पांच पांडवोए ज्यारे दग्ध
थयेली श्रीकृष्णनी द्वारकानगरीने देखी त्यारे संसारनी आवी क्षणभंगुरता देखीने तेमनुं
चित्त उदास थयुं अने नेमप्रभुना समवसरणमां आव्या; प्रभुना श्रीमुखथी धर्मोपदेश
सांभळीने तेओ संसारथी विरक्त थया अने मुनिदशा प्रगट करी आत्मध्यानपूर्वक
देशोदेश विचरता–विचरता तेओ सोनगढनी नजीक आवेला शत्रुंजयगिरि–सिद्धक्षेत्र पर
पधार्या; अनेक भक्तजनोए अत्यंत हर्षपूर्वक पांडव–मुनिभगवंतोनां दर्शन कर्या. पण
दुर्योधनना भाणेजना मनमां पांडवोने देखी एवो दुष्ट विचार आव्यो के आ पांडवोए
मारा मामानो नाश कर्यो छे माटे अत्यारे हुं तेनुं वेर लउं; केमके अत्यारे मुनिदशामां
तेओ कांई प्रतिकार नहीं करे.–आवा दुष्ट विचारपूर्वक तेणे लोखंडना धखधखता
दागीना पांडवोना शरीरमां पहेराव्या, ने ए रीते तेमने जीवता बाळी नांखवानो घोर
उपसर्ग कर्यो. माथा पर धगधगता लोढाना मुगट पहेराव्या तेथी माथुं सळगवा लाग्युं;
हाथ–पगना दागीनाथी हाथ–पग सळगवा मांडया. ते वखते–
१. युधिष्ठिर–भीम–अर्जुन तो चिदानंदतत्त्वनी शांत अनुभूतिमां एवा लीन थई
गया के उपसर्ग उपर लक्ष पण न गयुं. अग्निना भडका वच्चे पण चैतन्यना
शांतरसमां तेओ एवा ठरी गया के ते ज वखते क्षपकश्रेणी मांडी, संपूर्ण
वीतराग थई, केवळज्ञान पाम्या, अने तत्क्षण मोक्ष पाम्या. तेमने रागनी
उत्पत्ति थई ज नहि, तेथी तेओ परम अहिंसक रह्या; तेमनो चैतन्यभाव जराय
हणायो नहि.
२. बीजी तरफ नकुल अने सहदेव ए बे भाईओए जो के शांतिथी उपसर्ग सहन
कर्यो, दुश्मन उपर क्रोध न कर्यो; पण तेमने एटली वृत्ति ऊठी के आ उपसर्गमां