Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : २५ :
हुं एक शाश्वत ज्ञान–दर्शनलक्षण आत्मा छुं; उपयोग सिवाय बीजा बधा
संयोगलक्षणरूप भावो छे ते माराथी बहार छे; ते मारा स्वभावलक्षण नथी.–आवी
धर्मात्मानी अनुभूति छे.
रागादि भावो जो आत्मानुं स्वलक्षण होय तो, ते रागादिना नाशथी आत्मा
पण मरण पामे. पण रागनो नाश थवा छतां सिद्धजीवो सादि–अनंतकाळ आनंदथी
जीवे छे.–माटे राग ते आत्मानुं लक्षण नथी. रागने लक्षण मानतां अव्याप्ति दोष आवे
छे.
उपयोग ज आत्मानुं लक्षण छे. ते आत्माथी कदी जुदुं पडतुं नथी. उपयोगना
अभावमां आत्मानो अभाव होय छे; ने आत्मा सदाय उपयोगस्वरूप होय छे; आत्मा
उपयोगलक्षण वगरनो कदी होतो नथी.
उपयोगलक्षण जीव छे ने ए ज साचुं जीवन छे;
ए जीवजो जीवडावजो, प्रभु वीरनो उपदेश छे.
चेतन–जीवन वीरपंथमां, नहि देहजीवन सत्य छे;
चेतन रहे निजभावमां बस! ए ज साचुं जीवन छे.

उपयोग ते जीवनुं सर्वस्व छे. ते उपयोगनी शुद्ध अवस्था होय त्यारे तेनी साथे
शांति–वीतरागता–आनंद वगेरे सर्व गुणोथी आत्मानुं जीवन शोभी ऊठे छे; तेथी ते
साचुं जीवन छे, अने ते जीवने ईष्ट छे.
मोह–रागादि भावो उपयोगथी विपरीत छे, तेमां शांतिनुं जीवन नथी पण
भावमरण छे; तेथी जीवने ते ईष्ट नथी.
शुद्धोपयोग ते साचो अहिंसा धर्म छे; तेमां रागनो अभाव छे. ते ज जीवने ईष्ट
छे, केमके तेमां स्वभावनो घात थतो नथी पण आनंदमय स्वभावनी उपलब्धि थाय
छे, तेथी ते ज जीवने ईष्ट छे. आ रीते वीतरागभावनो उपदेश ते ज भगवान
महावीरनो ईष्ट उपदेश छे.
हे भव्य जीवो!
भगवान महावीरना आवा ईष्ट उपदेशने ओळखीने तेनी उपासना करो; ते ज
भगवानना निर्वाणनो साचो महोत्सव छे, ने ते ज वीरप्रभु–प्रत्ये साची अंजलि छे.
जय महावीर